समीक्षा, 'सम् + ईक्षा के मेल से बना है, ये शब्द। यहाँ सम् से मतलब है - पूरी तरह से और ईक्षा अर्थात् देखना, विचारना, देखने की क्रिया, दृष्टि या नज़र। इस तरह समीक्षा का शाब्दिक अर्थ है - छान-बीन या जाँच-पड़ताल करने के लिए किसी वस्तु या बात को अच्छी तरह से देखने की क्रिया अर्थात अच्छी तरह और ध्यानपूर्वक देखना या परीक्षण करना। लेखक के द्वारा लिखी गयी पुस्तक ( कथा, उपन्यास, नाटक, संस्मरण आदि) को पढ़ने के बाद उसके विषय में बताना उस पुस्तक की समीक्षा कहलाता है और उस लिखे विचार को ही समीक्षा लेखन कहते हैं। पुस्तकों और टीवी कार्यक्रमों की समीक्षाएँ महत्त्वपूर्ण होती हैं मान लीजिए, यदि आप कोई शो नहीं देख पाए या कोई पुस्तक नहीं पढ़ पाए तो उस पर लिखी गई समीक्षा पढ़कर आप उसके बारे में जान सकते हैं और निर्णय ले सकते हैं कि अगली बार उसे देखा जाए या नहीं। पुस्तक समीक्षा से ही पाठक किसी पुस्तक को पढ़ने या ना पढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं। किसी पुस्तक के लेख, कहानी, उपन्यास, नाटक, संस्मरण पर समीक्षक की जो प्रतिक्रिया होती है; वह अच्छी या खराब हो सकती है, इसे पुस्तक समीक्षा में ईमानदारी से बताया जाता है। पुस्तक समीक्षा से पाठकों को पुस्तक के विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिलती है।
1.समीक्षा लेखन में लेखक के कार्य और उसके मूल्यांकन का गहन विश्लेषण होना चाहिए।
2. लेखन के उद्देश्य के आधार पर, विभिन्न शैलियों का उपयोग किया जा सकता है।
3.समीक्षा एक निश्चित स्वर में एक निश्चित योजना के अनुसार लिखी जाती है।
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