सम्मान
शोषण
धनाढ्य
गगनचुंबी
(झोंपड़ी से) छिः गंदी! दूर हटो। मेरी सारी सुंदरता बिगाड़ रही हो। मेरे सामने ख
होते तुम्हें शर्म नहीं आती?
(अट्टालिका से) वाह! तुम सुंदर तो बहुत हो, पर उससे अधिक घमंडी भी हो।
तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जो तुम इस तरह आपे से बाहर हो रही हो?
(इठलाकर) मैंने बता तो दिया कि तुम मेरे सामने खड़ी होकर मेरी सुंदरता बिगाड
हो। तुम इससे अधिक मेरा बिगाड़ ही क्या सकती हो?
मैं तो बनाती हूँ, बिगाड़ती किसी का कुछ भी नहीं। यह मत भूलो, झोंपड़ियाँ न है
ये ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ भी न होतीं।
(घृणापूर्वक) क्या ज़माना आ गया, चींटी के भी पंख निकलने लगे! तुम अप
तो देखो। कच्ची मिट्टी की टूटी-फूटी दीवारें और टूटा-फूटा छप्पर यही तो
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