Social Sciences, asked by ashoklanje16, 3 months ago

समानता की परिभाषा अनुच्छेद के तहत देकर t.m.s. का समानता के लिए सांघर्ष परीनामों के साथ स्पष्ट कीजिए?​

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Answered by mohammedafreed827
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समानता

[||समानता]] सामाजिक सन्दर्भों में समानता (equality) का अर्थ किसी समाज की उस स्थिति से है जिसमें उस समाज के सभी लोग समान (अलग-अलग नहीं) अधिकार या प्रतिष्ठा (status) रखते हैं। सामाजिक समानता के लिए 'कानून के सामने समान अधिकार' एक न्यूनतम आवश्यकता है जिसके अन्तर्गत सुरक्षा, मतदान का अधिकार, भाषण की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, सम्पत्ति अधिकार, सामाजिक वस्तुओं एवं सेवाओं पर समान पहुँच (access) आदि आते हैं। सामाजिक समानता में स्वास्थ्य समानता, आर्थिक समानता, तथा अन्य सामाजिक सुरक्षा भी आतीं हैं। इसके अलावा समान अवसर तथा समान दायित्व भी इसके अन्तर्गत आता है।

सामाजिक समानता (Social Equality) किसी समाज की वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत उस समाज के सभी व्यक्तियों को सामाजिक आधार पर समान महत्व प्राप्त हो। समानता की अवधारणा मानकीय राजनीतिक सिद्धांत के मर्म में निहित है। यह एक ऐसा विचार है जिसके आधार पर करोड़ों-करोड़ों लोग सदियों से निरंकुश शासकों, अन्यायपूर्ण समाज व्यवस्थाओं और अलोकतांत्रिक हुकूमतों या नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करते रहे हैं और करते रहेंगे। इस लिहाज़ से समानता को स्थाई और सार्वभौम अवधारणाओं की श्रेणी में रखा जाता है।

दो या दो से अधिक लोगों या समूहों के बीच संबंध की एक स्थिति ऐसी होती है जिसे समानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।  लेकिन, एक विचार के रूप में समानता इतनी सहज और सरल नहीं है, क्योंकि उस संबंध को परिभाषित करने, उसके लक्ष्यों को निर्धारित करने और उसके एक पहलू को दूसरे पर प्राथमिकता देने के एक से अधिक तरीके हमेशा उपलब्ध रहते हैं। अलग-अलग तरीके अख्तियार करने पर समानता के विचार की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ उभरती हैं। प्राचीन यूनानी सभ्यता से लेकर बीसवीं सदी तक इस विचार की रूपरेखा में कई बार ज़बरदस्त परिवर्तन हो चुके हैं। बहुत से चिंतकों ने इसके विकास और इसमें हुई तब्दीलियों में योगदान किया है जिनमें अरस्तू, हॉब्स, रूसो, मार्क्स और टॉकवील प्रमुख हैं।

परिभाषा

समानता की परिभाषा करना जरा कठिन है। यह मूर्त्त की अपेक्षा बहुत अधिक अमूर्त्त है। ज्यादातर लोग इसे अचेतन रूप से उन भावों से जोड़ते हैं जो ‘वही’, ‘एक-जैसा’, ‘न्यायोचित’ आदि शब्दों से संप्रेषित होते हैं। एच.जे. लास्की का कहना है, ‘राजनीति विज्ञान के पूरे क्षेत्र में कोई भी विचार’ समानता से ‘अधिक कठिन नहीं है।’

रूसो प्राकृतिक और पारंपरिक असमानताओं में भेद करते थे। प्रकृति-प्रदत्त असमानताएँ (उदाहरण के लिए एक आदमी लंगड़ा या अंधा है और दूसरा ऐसा कुछ नहीं। प्राकृतिक असमानताएँ हैं, समाज द्वारा सृजित असमानताएँ (जैसे जाति, लिंग, अमीर-गरीब, मजदूर-पूँजीपति, मालिक-नौकर आदि) पारंपरिक असमानताएँ हैं। समाजवादियों और मार्क्सवादियों का कहना है कि पारंपरिक असमानताओं, खासतौर से पारंपरिक आर्थिक असमानताओं में इतनी शक्ति होती है कि वे तमाम प्राकृतिक असमानताओं को ढक देती हैं। मार्क्स कहते हैं:

मैं क्या हूँ और मुझमें क्या योग्यता है, यह किसी भी तरह मेरी वैयक्तिकता से तय नहीं होता। मैं कुरूप हूँ, लेकिन मैं अपने लिए सबसे रूपवती स्त्रियों को खरीद सकता हूँ। इसलिए मैं कुरूप नहीं हूँ, क्योंकि पैसा कुरूपता के प्रभाव को - उसकी बाधक शक्ति को - शून्य कर देता है। मेरी व्यक्तिगत खामी यह है कि मैं लंगड़ा हूँ, लेकिन पैसा मेरे लिए दो दर्जन पैर जुटा देता है। इसलिए मैं लंगड़ा नहीं हूँ। मैं बेईमान, काइयाँ और मूर्ख हूँ, लेकिन पैसे की इज्जत होती है, इसलिए जिसके पास वह है, उसकी इज्जत होती है।... मैं बेदिमाग हूँ, लेकिन असली दिमाग पैसा है, इसलिए जिसके पास पैसा है वह बेदिमाग कैसे हो सकता है? इसके अलावा, वह चतुर लोगों को अपने लिए खरीद सकता है और जिसके बस में चतुर व्यक्ति हैं वह क्या चतुर व्यक्ति से भी अधिक चतुर नहीं है?[5]

सर्वाधिक प्रभावशाली सकारात्मक चिन्तक लास्की ने समानता के लिए निम्नलिखित स्थितियों को आवश्यक बतायाः

समाज में विशेषाधिकारों का अन्त,

सबके लिए अपने व्यक्तित्वों की समस्त संभावना का विकास करने के पर्याप्त अवसर,

सभी के लिए सामाजिक लाभ पाने की सुविधा, जिसमें पारिवारिक स्थिति या धन अथवा उत्तराधिकार आदि के आधार पर कोई प्रतिबंध न हो,

आर्थिक और सामाजिक शोषण की अनुपस्थिति।

हाल में ब्रायन वर्नन ने समानता की एक व्यापक अवधारणा प्रस्तुत करते हुए सुझाया है कि समानता में निम्नलिखित घटक अवधारणाओं का समावेश होना चाहिएः

व्यक्तियों के बीच मूलभूत समानता, जिसकी अभिव्यक्ति, उदाहरणार्थ, इस तरह के कथनों में होती हैः ‘ईश्वर की दृष्टि में सभी समान हैं‘।

अवसर की समानता, जिसका मतलब यह है कि सामाजिक विकास के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्थाओं के द्वारा बिना किसी भेद भाव के सबके लिए खुले होने चाहिए। अगर चयन का कोई मापदंड हो तो उसे अभिरुचि, उपलब्धियों और प्रतिभाओं जैसी खूबियों पर आधारित होना चाहिए।

स्थितियों की समानता, अर्थात् प्रासंगिक सामाजिक समूहों के लिए जीवन के लिए जरूरी स्थितियों को समान बनाने का प्रयत्न हो। उदाहरण के लिए, यदि कुछ लोगों को जीवन-यात्रा की शुरूआत मूलभूत आर्थिक या अन्य प्रकार की मूलभूत निर्योग्यताओं से करनी पड़े और जीवन की दौड़ का मार्ग समान न हो तो यह कहना काफी नहीं है। स्पर्धा तो पूरी तरह खुली हुई है।

परिणाम की समानता, या दूसरे शब्दों में ऐसे परिणामों की समानता जिनमें उन असमानताओं को, जिनके साथ हम आरम्भ करते हैं, अन्ततः सामाजिक समानताओं में बदल देने का प्रयत्न निहित हो। समानता के मुख्य रूप से चार पहलू हैं : कानूनी, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक।

Answered by Anonymous
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