सम्राट हर्ष के विजय अभियानों का उल्लेख कीजिए।
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हर्षवर्धन (590-647 ई.) प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। वह हिंदू सम्राट् था जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवान् च्वांग के विवरण और हर्ष एवं बाणभट्ट रचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। शासनकाल ६०६ से ६४७ ई.। वंश - थानेश्वर का पुष्यभूति वंश (संस्थापक पुष्यभूति) (वर्धन राजवंश)। उसके पिता का नाम 'प्रभाकरवर्धन' था। राजवर्धन उसका बड़ा भाई और राज्यश्री उसकी बड़ी बहन थी। ६०५ ई. में प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के पश्चात् राजवर्धन राजा हुआ पर मालव नरेश देवगुप्त और गौड़ नरेश शंशांक की दुरभिसंधि वश मारा गया। हर्षवर्धन 606 में गद्दी पर बैठा। हर्षवर्धन ने बहन राज्यश्री का विंध्याटवी से उद्धार किया, थानेश्वर और कन्नौज राज्यों का एकीकरण किया। देवगुप्त से मालवा छीन लिया। शंशाक को गौड़ भगा दिया। दक्षिण पर अभियान किया पर आंध्र पुलकैशिन द्वितीय द्वारा रोक दिया गया।
उसने साम्राज्य को सुंदर शासन दिया। धर्मों के विषय में उदार नीति बरती। विदेशी यात्रियों का सम्मान किया। चीनी यात्री युवेन संग ने उसकी बड़ी प्रशंसा की है। प्रति पाँचवें वर्ष वह सर्वस्व दान करता था। इसके लिए बहुत बड़ा धार्मिक समारोह करता था। कन्नौज और प्रयाग के समारोहों में युवेन संग उपस्थित था। हर्ष साहित्य और कला का पोषक था। कादंबरीकार बाणभट्ट उसका अनन्य मित्र था। हर्ष स्वयं पंडित था। वह वीणा बजाता था। उसकी लिखी तीन नाटिकाएँ नागानन्द, रत्नावली और प्रियदर्शिका संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं। हर्षवर्धन का हस्ताक्षर मिला है जिससे उसका कलाप्रेम प्रगट होता है।
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत में (मुख्यतः उत्तरी भाग में) अराजकता की स्थिति बना हुई थी। ऐसी स्थिति में हर्ष के शासन ने राजनैतिक स्थिरता प्रदान की। कवि बाणभट्ट ने उसकी जीवनी हर्षचरित में उसे चतुःसमुद्राधिपति एवं सर्वचक्रवर्तिनाम धीरयेः आदि उपाधियों से अलंकृत किया। हर्ष कवि और नाटककार भी था। उसके लिखे गए दो नाटक प्रियदर्शिका और रत्नावली प्राप्त होते हैं।
हर्ष का जन्म थानेसर (वर्तमान में हरियाणा) में हुआ था। थानेसर, प्राचीन हिन्दुओं के तीर्थ केन्द्रों में से एक है तथा ५१ शक्तिपीठों में एक है। यह अब एक छोटा नगर है जो दिल्ली के उत्तर में हरियाणा राज्य में बने नये कुरुक्षेत्र के आस-पडोस में स्थित है। हर्ष के मूल और उत्पत्ति के संर्दभ में एक शिलालेख प्राप्त हुई है जो कि गुजरात राज्य के गुन्डा जिले में खोजी गयी है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक में इनके शासन काल के बारे में लिखा है..........