समास किसे कहते हैं ?यह कितने प्रकार के होते हैं?
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➲ ‘समास’ की परिभाषा के अनुसार दो शब्दों के मिलाकर एक संक्षिप्त रूप देखकर एक नये स्वतंत्र शब्द की निर्माण किया जाता है तो इस मेल को ‘समास’ कहते हैं। जब दो या दो से अधिक पदों को मिलाकर एक नये शब्द की उत्पत्ति की जाये अर्थात उन पदों का संक्षिप्तीकरम करके नया सार्थक अर्थ वाला शब्द बनाया जाया तो वो ‘समास’ कहलाता है और समास से बने शब्द के पदों को अलग करके पुनः उनके मूल स्वरूप में लाना ‘समास विग्रह’ कहलाता है।
समास के 6 भेद होते हैं...
⑴ अव्ययीभाव समास
⑵ तत्पुरुष समास
⑶ कर्मधारय समास
⑷ बहुव्रीहि समास
⑸ द्वंद्व समास
⑹ द्विगु समास
अव्ययीभाव समास ⦂ अव्ययी भाव समास में प्रथम पद प्रधान होता है, और एक अव्यय होता है, जिसके प्रभाव से समस्त पद अव्यय बन जाता है।
तत्पुरुष समास ⦂ ‘तत्पुरुष समास’ की परिभाषा के अनुसार जहाँ पर द्वितीय पद प्रधान होता है, वहाँ पर तत्पुरुष समास होता है। समासीकरण करते समय बीच की विभक्ति का लोप हो जाता है।
कर्मधारण्य समास ⦂ कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण का कार्य करता है तथा दूसरा पद उसका विशेष्य होता है अर्थात पहला पद उपमान तथा दूसरा पद उपमेय होता है।
बहुव्रीहि समास ⦂ ‘बहुव्रीहि समास’ की परिभाषा के अनुसार जिस शब्द में कोई पद प्रधान न हो, जिन पदों को जोड़कर नये शब्द की रचना हुई है उस नये शब्द का अर्थ उन पदों के अर्थ से भिन्न हो तो वहाँ ‘बहुव्रीहि समास’ होता है। बहुव्रीहि समास के सभी उदाहरण योगरूढ़ शब्द हैं। योगरूढ़ शब्द वे शब्द होते हैं जो किसी सामान्य अर्थ को प्रकट ना करके किसी विशिष्ट अर्थ को प्रकट करते हैं। सारे योगरूढ़ शब्द किसी विशिष्ट अर्थ में योगरूढ़ रूढ़ हो जाते हैं। बहुव्रीहि समास में बी जो उदाहरण होते हैं, वह सब किसी विशिष्ट अर्थ में योगरूढ़ हो जाते हैं।
द्वंद्व समास ⦂ द्वंद्व समास के समास की परिभाषा के अनुसार द्वंद्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं तथा समास का विग्रह करने पर ‘और’ ‘अथवा’ ‘तथा’ ‘या’ ‘एवं’ जैसे योजक लगते हैं।
द्विगु समास ⦂ द्विगु समास में पहला पद किसी संख्या को प्रदर्शित करता है और पहला पद एक संख्यावाचक विशेषण की तरह कार्य करता है। पहले पद के बाद शेष पद किसी समूह या समाहार का बोध कराते हैं।
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