Hindi, asked by fazalshaikh32786, 3 months ago

समै-समै सुंदर सबै, रूप-कुरूप न कोइ । मन की रुचि जेती जितै, तित तेती रुचि होइ। । bhavarth​

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Answered by Anonymous
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प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘बिहारी के दोहे’ से लिया गया है, जिसके रचयिता बिहारी लाल जी हैं। संदर्भ : इस दोहे में बिहारी लाल ने यह बताने का प्रयास किया है कि कोई भी वस्तु सुन्दर या असुन्दर नहीं होती। भाव स्पष्टीकरण : यह समय-समय की बात होती है कि कोई वस्तु हमें किसी समय सुंदर प्रतीत होती है तो वही वस्तु किसी और समय सुंदर नहीं प्रतीत होती। यह मन की रुचि और अरुचि पर निर्भर करता है। इसका अर्थ यह है कि अपने आप में कोई वस्तु सुंदर या कुरुप नहीं होती। विशेष : नीति परक दोहा

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