समुद्र की बेचारगी और लाचारी को किस प्रकार प्रकट किया गया है?
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समुद्री जीवविज्ञान (Marine Biology) के अंतर्गत महासागरों, सागरों के अन्दर के एवं उनके तटों के पादप एवं प्राणियों की संरचना, जीवनवृत्त तथा उनकी प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। ऐसे अध्ययन वैज्ञानिक तथा आर्थिक महत्व के होते हैं, जैसे खाद्य मछलियों के प्रवास (migration) का अध्ययन। समुद्री जीवविज्ञान के अध्ययन से समुद्री जीवों के जीवनवृत्त पर विभिन्न भौतिक एवं रासायनिक कारकों (जैसे ताप, दाब, प्रकाश, धारा, पादप पोषक, लवणता आदि) के विभिन्न प्रभावों को जानने में सहायता मिलती है।
समुद्री जीवविज्ञान (Marine Biology) के अंतर्गत महासागरों, सागरों के अन्दर के एवं उनके तटों के पादप एवं प्राणियों की संरचना, जीवनवृत्त तथा उनकी प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। ऐसे अध्ययन वैज्ञानिक तथा आर्थिक महत्व के होते हैं, जैसे खाद्य मछलियों के प्रवास (migration) का अध्ययन। समुद्री जीवविज्ञान के अध्ययन से समुद्री जीवों के जीवनवृत्त पर विभिन्न भौतिक एवं रासायनिक कारकों (जैसे ताप, दाब, प्रकाश, धारा, पादप पोषक, लवणता आदि) के विभिन्न प्रभावों को जानने में सहायता मिलती है।समुद्री जीवों की किस्में
समुद्री जीवविज्ञान (Marine Biology) के अंतर्गत महासागरों, सागरों के अन्दर के एवं उनके तटों के पादप एवं प्राणियों की संरचना, जीवनवृत्त तथा उनकी प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। ऐसे अध्ययन वैज्ञानिक तथा आर्थिक महत्व के होते हैं, जैसे खाद्य मछलियों के प्रवास (migration) का अध्ययन। समुद्री जीवविज्ञान के अध्ययन से समुद्री जीवों के जीवनवृत्त पर विभिन्न भौतिक एवं रासायनिक कारकों (जैसे ताप, दाब, प्रकाश, धारा, पादप पोषक, लवणता आदि) के विभिन्न प्रभावों को जानने में सहायता मिलती है।समुद्री जीवों की किस्मेंसमुद्री जीव दो प्रकार के होते हैं - पौधे तथा प्राणी। समुद्र में केवल आदिम समूह थैलोफ़ाइटा (Thallophyta) और कुछ आवृतबीजी (Angiosperm) पौधे ही पाए जाते हैं। समुद्रों में मॉस (देखें हरिता) तथा पर्णांग (moss and fern) बिल्कुल नहीं पाए जाते। अधिकांश समुद्री पौधे हरे, भूरे तथा लाल शैवाल (algae) हैं (देखें शैवाल)। शैवाल आधार से संलग्नक द्वारा जुड़े रहते हैं। ये ५० मीटर से कम की गहराई में पाए जाते हैं। समुद्री पौधों में वास्तविक जड़ें तथा वाहिनीतंत्र नहीं होते, अत: ये पौधे अपनी सामान्य सतह से भोजन अवशोषित करते हैं। इन पौधों में जनन सूक्ष्म बीजाणुओं (spores) द्वारा होता है। इनके बीजाणु अस्पष्ट नर या मादा पौधे में, जिस युग्मकोद्भिद पीढ़ी (gametophyte generation) कहते हैं, परिवर्धित हो जो हैं। यह पीढ़ी फिर बीजाणु उत्पन्न करनेवाली बीजाणुउद्भिद् पीढ़ी (sporophytic generation) पैदा करती है। तैरते हुए परागकणों द्वारा निमग्न फूलों का परागण होता है, जिससे वास्तविक बीज बनते हैं। समुद्री प्राणियों द्वारा संलग्न पौधों का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है। प्रमुख खाद्य सामग्री के रूप में सूक्ष्म उत्प्लावाक, डायटम (diatom), पादप समभोजी (holophytes) तथा डाइनोफ्लैजिलेट्स (dinoflagellates) ही प्रयुक्त होते हैं, क्योंकि ये अत्यधिक संख्या में पाए जाते हैं। इनका जनन भी सरलता से होता है। समुद्र में जीवाणुओं (bacteria) की संख्या भी अत्यधिक होती है, परंतु इनका महत्व केवल कार्बनिक वस्तुओं के क्षय (decay) तक ही सीमित है।