Science, asked by kumarsujit0065, 8 months ago

समुद्र के पानी के अपेक्षा मीठे पानी में जहाज अधिक गहराई तक डूबता है kyu​

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Answered by deepakjoshi14
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हम काफ़ी दिनों से सुन रहे हैं कि धरती गर्म हो रही है. जलवायु परिवर्तन हो रहा है. पर्यावरण में तेज़ी से बदलाव आ रहा है. इस वजह से जल्द ही ध्रुवों पर जमी बर्फ़ पिघलेगी. इससे समुद्र में पानी बढ़ेगा.

समंदर किनारे बसे शहर, छोटे-छोटे द्वीप डूब जाएंगे. मुंबई, कोलकाता, चेन्नई के समुद्र तट वीरान हो जाएंगे. न्यूयॉर्क, सिडनी और मयामी के ख़ूबसूरत समंदर किनारे, पानी में डूब जाएंगे.

अपने पसंदीदा समुद्री तट के ऐसे पानी में डूबने का तसव्वुर डराता है. मगर पर्यावरण की निगरानी करने वाले वैज्ञानिक काफ़ी वक़्त से ऐसे हालात के बारे में आगाह कर रहे हैं. वो कहते हैं कि समुद्र में पानी तेज़ी से बढ़ रहा है. इस दावे को मज़बूत बनाने के लिए वो कई सबूत होने का दावा भी करते हैं.

अगर ऐसा हो रहा है तो आख़िर समंदर का स्तर कितना ऊंचा उठ सकता है? इससे समुद्र के क़रीब रहने वालों पर क्या असर पड़ेगा?

पहले-पहल बीसवीं सदी की शुरुआत में वैज्ञानिकों की नज़र समुद्रों में पानी बढ़ने की तरफ़ गई थी. 1941 में जर्मन मूल के अमरीकी वैज्ञानिक बेनो गुटेनबर्ग ने समुद्र की लहरों, पानी के स्तर को मापा था. तभी उन्हें लगा था की समंदर के अंदर कुछ तो गड़बड़ हो रही है. समंदर में आने वाले ज्वार भाटा के क़रीब सौ साल के आंकड़ों का हिसाब लगाया गया तो गुटेनबर्ग का शक सही निकला. पिछले सौ सालों से समुद्र का स्तर बढ़ रहा था.

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हालांकि आज की तारीख़ में ज्वार-भाटा के आंकड़े भरोसेमंद नहीं माने जाते. लेकिन 1993 में अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और फ्रेंच स्पेस कंपनी ने सैटेलाइट से समुद्र के जल स्तर के आंकड़े जुटाए. इनसे साफ़ हो गया है कि समुद्र में पानी बढ़ रहा है.

आज की तारीख़ में हमें ये भी मालूम है कि समंदरों का पानी, धरती के बढ़ते तापमान की वजह से ही बढ़ रहा है. विज्ञान का नियम ही ये कहता है कि गर्म होने पर पानी का दायरा बढ़ जाता है.

अमरीकी वैज्ञानिक जॉन क्रैस्टिग कहते हैं कि पिछले सौ सालों में समंदर का स्तर जो बढ़ा है वो, धरती पर बढ़ रही गर्मी के चलते ही हुआ है. आगे भी ऐसा होता रहने का डर है. गर्मी बढ़ेगी तो धरती के ग्लेशियर पिघलेंगे. इनसे निकलने वाला पानी भी समंदर में ही जाकर मिलेगा.

इससे कितना बुरा हो सकता है?

इस ख़तरे का अंदाज़ा हम समंदर के पुराने स्तर का पता लगाकर कर सकते हैं. वैज्ञानिक आज समुद्र की तलहटी, वहां की चट्टानों को देखकर, ये पता लगा सकते हैं कि पहले समुद्र का पानी कहां तक पहुंचता रहा होगा. समंदर में मिलने वाले कंकाल भी इस बात की गवाही दे सकते हैं.

आज से तीस लाख साल पहले धरती पर प्लायोसीन युग था. इस दौरान समंदर का पानी कहां तक था, इससे आने वाले हालात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

मौरीन रेमो, पर्यावरण की दुनिया की बड़ी वैज्ञानिक हैं. वो अमरीका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से जुड़ी हैं. वो कहती हैं कि प्लायोसीन युग में धरती का तापमान आज से दो से तीन डिग्री सेल्सियस ज़्यादा था.

पिछले साल ही पेरिस में हुई क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस में धरती के तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी की ही पाबंदी तय हुई है. ऐसे में प्लायोसीन युग के समंदर के स्तर का पता लगाकर हम आने वाले ख़तरे को समझ सकते हैं.

डराने वाली बात ये है कि प्लायोसीन युग के दौरान के समुद्र के स्तर का जो अंदाज़ा लगाया जाता है वो आज के स्तर से दस से चालीस मीटर ज़्यादा थी. मौरीन कहती हैं कि अगर इसी हिसाब से धरती गर्म होती रही, तो आगे चलकर इतना ही पानी समंदर में बढ़ना तय है.

आज फ़िक्र समंदर में बढ़ते पानी की ही नहीं, इसकी रफ़्तार को लेकर भी है. जितनी तेज़ी से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है वो वाक़ई डराने वाला है.

2016 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक़ पिछले सौ सालों में समंदर का पानी बढ़ने की रफ़्तार, पिछली सत्ताईस सदियों से ज़्यादा तेज़ रही है.

जिन आंकड़ों की मदद से ये बात कही जा रही है वो पहले के मुक़ाबले ज़्यादा भरोसेमंद हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि धरती के तापमान में मामूली बढ़ोतरी से भी समंदर के तेवर तल्ख़ हो जाते हैं.

दिक़्क़त की बात सिर्फ़ ये है आंकड़े ये तो बताते हैं कि समंदर का पानी बढ़ रहा है. मगर ये बढ़कर कहां तक पहुंचेगा, इस बारे में ये आंकड़े कोई इशारा नहीं करते.

वैसे कुछ वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब तलाशने की भी कोशिश की है. इस बारे में हुई एक स्टडी के आंकड़े डराने वाले हैं. इनके मुताबिक़, अगर धरती का बढ़ता तापमान रोकने की कोशिश न हुई तो दुनिया भर में समुद्र का स्तर पचास से 130 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है. संयुक्त राष्ट्र के क्लाइमेट चेंज पैनल की रिपोर्ट ने भी यही आशंका जताई है.

हालांकि इसमें थोड़ा हेर-फेर हो सकता है. अगले सौ सालों में इंसान, धरती का तापमान बढ़ने से रोकने में कामयाब भी हो सकता है. या इसमें तेज़ी भी आ सकती है. दोनों ही सूरतों का अंदाज़ा लगाकर ही ये अनुमान बताए गए हैं. हालांकि अभी भी ये साफ़ नहीं कि ग्लेशियर किस रफ़्तार से पिघलने वाले हैं.

ये स्टडी जर्मनी के पॉट्सडैम में स्थित, ''क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट'' ने की थी. इससे जुड़े आंद्रे लेवरमन कहते हैं कि कंप्यूटर के मॉडल से जुटाए गए आंकड़े बेहतर तो हुए हैं. मगर ये पूरी तरह भरोसेमंद नहीं.

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