समाधि में लड़के और लड़कियों के बीच में होने वाले भेदभाव को समझाओ हिंदी में
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O समाज में लड़के और लड़कियों के बीच में होने वाले भेदभाव को समझाओ।
► समाज में लड़के और लड़कियों में कई तरह से भेदभाव किया जाता है। अक्सर अपने आसपास इस तरह के भेदभाव से परिचित रहे हैं। लड़के और लड़कियों को समान स्तर पर नहीं आंका जाता।
हमारे समाज में यह मान्यता है कि कुछ कार्य केवल लड़के कर सकते हैं और कुछ कार्य केवल लड़कियों के लिए ही हैं। यहाँ तक कि स्वभाव और आचरण के संबंध में भी हम ने ऐसी धारणा बना रखी है कि ऐसा स्वभाव या आचरण केवल लड़कों को ही शोभा देता है या वैसा सुबह या आचरण केवल लड़कियों को ही शोभा देता है। उदाहरण के लिए रोने के संबंध में लें, तो बचपन में लड़कों के गिर जाने पर चोट लग जाने पर लड़का जब रोने लगता तो लोग बोलते हैं कि क्या लड़कियों की तरह रो रहा है, मर्द लोग रोते नहीं। लड़के के मन में शुरू से ही मर्द होने की धारणा बैठा दी जाती, जबकि रोना एक स्वभाविक प्रक्रिया है, वह एक मानवीय प्रक्रिया है जो लड़के या लड़की किसी में भी हो सकती है। उसी तरह लड़कियों का स्कूटर चलाना, बाइक चलाना, पेंट पहनना या शारीरिक शक्ति जैसे कार्य वाले प्रदर्शन करने पर लड़कियों को तो टोका जाता था कि यह काम तो लड़कों के हैं।
इस तरह की धारणाओं को रुढ़िबद्ध धारणायें कहा जाता है, जो अक्सर पहले से ही मन में बैठा ली जाती हैं। फिर अपनी सारी सोच उसी के इर्द-गिर्द विकसित कर दी जाती है, और हम ऐसी बातों से बाहर नहीं निकल पाते। घर में घरेलू कार्य जैसे रसोई में खाना बनाना, घरेलू साफ-सफाई आदि सभी कार्य लड़कियों के लिए ही निश्चित कर दिए गए। लड़कों द्वारा ऐसे किसी कार्य में हाथ लगाने पर उनका मजाक उड़ाया जाता है। विद्यालय जाना और शिक्षा हासिल करना लड़कों का पहला हक बना दिया गया। ग्रामीण समाज में लड़कियों को शिक्षा ना देने के लिए अनेक तर्क दिए जाते हैं कि उन्हें तो ससुराल में जाकर चूल्हा-चौका ही करना है, पढ़ लिख कर क्या करेंगी, कौन सी नौकरी करनी है।
इस तरह के अजीबोगरीब तर्क देकर लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। पोषण के संबंध में भी लड़के-लड़कियों में भेदभाव किया जाता रहा है। लड़कों को हमेशा अच्छा पोषण मिलता रहा है, जबकि लड़कियों को इतना अच्छा पोषण नहीं मिला। इस तरह हमारे समाज में इस तरह हमारे समाज में बचपन से ही ऐसे अनेक भेदभाव स्थापित कर दिए गए हैं, जो लड़के और लड़कियों को समान स्तर पर नहीं रखते। आज के आधुनिक समय में इन भेदभाव में कमी आई है, परंतु अभी भी पूरी तरह यह भेदभाव मिटा नही है।
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