सम्य राटु का विलोम शब्द है
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नई दिल्ली [समीर कुमार]। देश में महिला सशक्तिकरण को लेकर जारी चर्चाओं के बीच आज भी महिलाओं की परेशानियों और उसका उचित समाधान ढूंढने की दिशा में कोई ठोस नतीजा हासिल नहीं किया जा सका हैं। आज भी महिलायें उतनी सुरक्षित और सम्मानित नहीं दिखतीं, जितने अधिकार और अवसर उन्हें संविधान प्रदत हैं। वह पीड़ित, प्रताड़ित, भयभीत है और अपने अस्तित्व को लेकर आशंकित भी। यह अलग बात हैं कि महिला दिवस की धूम भारत में भी ज्यादा रहती है। इन सबके बावजूद आज भी महिलाओं को समाज में कई समस्याओं का सामना पड़ता हैं।
महिलाओं के सम्मान, शिक्षा और सुरक्षा को लेकर पूरी दुनिया में आठ मार्च को एक साथ महिला दिवस मनाने का निश्चय किया गया था। इसके बावजूद कई देशों में महिला दिवस या तो रस्म अदायगी भर होता है या तो मनाया भी नहीं जाता। भारत में इसका आयोजन मिश्रित तौर पर होता है, जिसका असर नगरों में ज्यादा और देहातों में मामूली सा होता हैं। अतीत में हमारे देश में स्त्री का मान-सम्मान बहुत था। जबकि अन्य देशों में यहां तक माना गया कि स्त्री को केवल इसलिए बनाया गया है कि वह पुरुष का वंश चला सके। कमोबेश उन्नीसवी शताब्दी तक यही मान्यता रही। मगर हमारे देश में ऐसी किसी मान्यता में विश्वास नहीं था। यूरोप में स्त्रियों की दयनीय हालत का इससे भी पता चलता है कि इंग्लैण्ड में उन्हें वोट का अधिकार 1918 में, फ्रांस में 1920 में और अमेरिका में तो यह अधिकार 1944 में मिला।