samaj ke bhitar badalte rishte aur manviya sambandhon par 8-10 vakya likhiye
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मानव और समाज
यूनान के महान दार्शनिक अरस्तु के अनुसार,”मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है” अक्षरश: सत्य प्रतीत होती है, यदि हम इसे सरल भाषा में कहें तो दोनों समाज और मनुष्य एक दूसरे के पूरक हैं यदि समाज का निर्माण मनुष्यों ने किया तो समाज ने उनके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मनुष्य पृथ्वी पे आया तो अकेला था परन्तु यहाँ वह अकेले अपना जीवन यापन नहीं कर सकता। एक दूसरे की सहायता की आवश्यकता पड़ी, जिसके लिए समाज या परिवार का होना आवश्यक हुआ और फिर परिवार से समाज और समाज से शहर, राज्य और राष्ट का निर्माण हुआ। सामाजिक जीवन से पृथक मनुष्य जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती, मनुष्य का चहुमुखि विकास समाज मे रह कर ही संभव है, समाज ही व्यक्ति के लिए वो सारी सुविधाएँ उपलब्ध कराता है जो उसके विकास के लिए परमावश्यक होती है।
मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं के लिए समाज की और समाज को अपने अस्तित्व के लिए मनुष्य की ज़रूरत होती है। ये भी माना जाता है कि प्राचीन काल में जब मनुष्य अकेला था तो स्वयं को जीव जंतुओं से बचाने के लिए उसने झुंडो में रहना प्रारम्भ किया धीरे-धीरे ये झुंड परिवार में बदले और परिवारों ने अपनी आवश्यकतों की पूर्ति के लिए विकास करना शुरू किया तब जाके समाज का निर्माण हुआ।
पुराने समय में संयुक्त परिवार हुआ करते थे और उनमे आदर्शता थी जो एक सभ्य समाज का निर्माण करती थी, परन्तु अब परिस्थिति बिलकुल बदल गयी है अब लोग स्वयं को समाज का हिस्सा तो मानते है, परन्तु समाज के प्रति उनके क्या कर्तव्य है भूलते जा रहे हैं, अब मनुष्य संक्युत परिवार में रहना उचित नहीं समझता वह स्वयं के स्वार्थ को सर्वोपरि मानते हुए आत्मक्रेंदित होता जा रहा है।