samaj me paryavaran jagrukta ko failane ki bhibin bidhiya kya hai
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इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर खड़े देश ने भौतिक प्रगति के नाम पर कंकरीट के शहर, धुआँ फैलाती फैक्ट्रियाँ और शोरगुल पनपाती संस्कृति को तो जन्म दे दिया लेकिन इसके पृष्ठ में होने वाली पर्यावरणीय हानि की ओर किसी का ध्यान नहीं गया और जब गया तो बहुत देर हो चुकी थी। शताब्दी परिवर्तन का उत्सव और वसन्त का अभाव, शान्ति की घोर कमी और वातावरण में अजीब-सा जहर घुला-घुला-सा दिख पड़ता है। यत्र-तत्र अजीब अजनबीपन का शिकार होती हमारी हरी-भरी संस्कृति।
पर्यावरणीय-समस्याओं की सूची का क्रम निरन्तर बढ़ रहा है, दूसरी ओर युवा वर्ग की महत्ती भूमिका जो कि इस प्रदूषण को रोक सकती है, वो अपनी ही जिन्दगी बनाने में व्यस्त है। भौतिक सुविधाओं के नाम पर वो अपने ही पर्यावरण को हानि पहुँचा रहे हैं। जीवन के अमूल्य क्षणों को व्यर्थ के कार्यो में बिताने से अच्छा तो यह है कि युवा वर्ग अपना थोड़ा-सा वक्त निकालकर पर्यावरणीय समस्याओं को हल करे व समाज को नई दिशा दे।
यदि हम अपनी पर्यावरणीय हानि को ओर ध्यान दें तो हमें अनुभव होगा कि औद्योगिक प्रगति ने जहाँ हमारे लिए प्रगति के द्वार खोले, वहीं हमें इसी ने ऐसे गर्त में पहुँचाया जहाँ से निकलना असम्भव-सा प्रतीत होता है, किन्तु किसी भी कार्य को असम्भव, कायर और ऐसे लोग समझते हैं। जिनमें पुरूषार्थ का अभाव होता है। पर्यावरण प्रदूषण का ज्ञान न होना भी इसके उत्पन्न होने के कारणों में से एक प्रमुख कारण है। निहित स्वार्थो ने व्यक्तिगत आवश्यकताओं ने मानव को इतना अन्धा बना दिया कि वे आगामी पीढ़ी के भविष्य की चिन्ता किए बगैर पर्यावरणीय संसाधनों का दोहन कर दोहन निरन्तर जारी रखे हुए हैं।
पृथ्वी पर विविध प्रकार का पर्यावरणीय प्रदूषण व्याप्त है, जिनमें वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, वनों का विनाश, मिट्टी को होने वाली विविध हानियाँ, नस्लों की हानि, ग्रीन हाऊस-उष्णीकरण, ओजोन की परत का क्षयशील होना आदि प्रमुखता से अपना स्थान रखते हैं।