samaj mein Buddhe vyaktiyon ki sthiti per anuchchhed pls answer fast it's important
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आज हमारे समाज में हमारे ही बुजुर्ग एकाकी रहने को विवश हैं उनके साथ उनके अपने बच्चे नहीं हैं। गावों में तो स्थिति फिर भी थोड़ी ठीक है लेकिन शहरों में तो स्थिति बिलकुल भी विपरीत है। ज्यादातर बुजुर्ग घर में अकेले ही रहते हैं, और जिनके बच्चे उनके साथ हैं वो भी अपने अपने कामों में इस हद तक व्यस्त हैं की उनकेपास अपने माता – पिता से बात करने के लिए समय ही नहीं है।
ऐसी स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है या क्या कारण हैं इस विवाद से मैं बचना चाहता हूँ, क्योंकि हर पीढ़ी के पास अपने ज़वाब हैं अपने तर्क हैं जो हर परिवार और व्यक्ति के लिए अलग अलग हैं और सही भी हो सकते हैं।
ये भी सच है की आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में व्यक्ति अपने लिए ही दो पल नहीं निकाल पाता है तो फिर अन्य जिम्मेदारियां कैसे पूरी करे। और यही सोच उसके व्यहवहार और विचारों में शुष्कता लाती है जिसके कारण परिवार में और खासतौर से उसके माता – पिता से दूरियां बढ़तीं हैं। कुछ विशेष कारण न होते हुए भी दोनों पीढ़ियों के बीच एक अद्रश्य दीवार सी खड़ी हो जाती है दोनों एक छत के नीचे रहते हैं प्रतिदिन एक दुसरे को देखते भी हैं मिलते भी हैं लेकिन फिर भी एक दुसरे से अपने विचारों का आदान प्रदान नहीं कर पाते और मैं इसको सकारात्मक दृष्टि से देखूं तो कहूँगा की चाहकर भी प्रयाप्त समय नहीं दे पाते।
उन परिवारों की स्थिति भी विकट है जिनके माता पिता और बच्चे अलग अलग शहरों में जीविका के कारण रह रहे हैं ऐसी स्थिति में बच्चे अपने माता पिता का पूरा ध्यान नहीं रख पाते और माता पिता अकेले ही जीवन गुजार देते हैं।
लेकिन ऐसी स्थितियां कहीं भी ये सिद्ध नहीं करतीं हैं की किसी बुजुर्ग का अपमान हुआ हो या बच्चों ने कोई अत्याचार किया हो।
लेकिन कुछ परिवार ऐसे भी हैं जहां वास्तव में बुजुर्गों की अवहेलना की जाती है अपमान किया जाता है। उनको तिरस्कृत किया जाता है। मैं फिर यही कहूँगा की हर परिवार की स्थिति भिन्न हो सकती है इसलिए किसी भी पीड़ी को दोष देना कठिन है।