समझाते हो? नही सकता? 'तुम उ जान बैसार देगा आविष्कार सुन नहीं सकते। सुनीता जैसे कई बच्चे हैं। इनमें से कुछ देख नहीं सकते तो कुछ बोल या नहीं सकते। कुछ बच्चों के हाथों में परेशानी है, तो कुछ चल । ऐसे ही किसी एक बच्चे के बारे में सोचो। यदि तुम्हें कोई शारीरिक परेशानी है, तो अपनी चुनौतियों के बारे में भी सोचो। उस चुनौती का करने के लिए तुम क्या आविष्कार करना चाहोगे? उसके बारे में तुम सामना मांचकर बताओ कि • तुम वह कैसे बनाओगे? उसे बनाने के लिए किन चीज़ों की ज़रूरत होगी? .
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सुनीता की पहिया कुर्सी पाठ का सारांश
सुनीता जब सुबह उठी तो उसे याद आया कि आज बाजार जाना है। वह खुश हो गई। सुनीता आज पहली बार अकेले बाजार जाने वाली थी। उसने अपनी टांगों को हाथों से पकड़कर पलंग से नीचे लटकाया और चलने-फिरने वाली पहिया कुर्सी की मदद ली। वह अपने काम फुर्ती से निपटा ली और नाश्ता कर माँ से झोला और रुपए लेकर अपनी पहिया कुर्सी पर बैठ बाजार की ओर चल दी। आज छुट्टी का दिन है। हर जगह बच्चे खेलते हुए दिखाई दे रहे हैं। वह उदास हो गई। वह भी उन बच्चों के साथ खेलना चाहती थी।
रास्ते में कई लोग सुनीता को देखकर मुस्कुराए, जबकि वह उनको जानती तक नहीं थी। सुनीता हैरान थी यह सोचकर कि लोग उसको इस तरह क्यों देख रहे हैं। एक छोटी लड़की ने आखिर सुनीता से पूछ ही लिया-तुम्हारे पास यह अजीब सी चीज क्या है? सुनीता अभी जवाब दे ही रही थी कि उस लड़की की माँ ने गुस्से में आकर लड़की को सुनीता से दूर हटा दिया। माँ ने उसे समझाया–तुम्हें इस तरह का सवाल नहीं पूछना चाहिए। सुनीता दुखी हो गई। उसने लड़की की माँ से कहा- मैं दुसरे बच्चों से अलग नहीं हैं।
सुनीता बाजार पहुँच गई। दुकान में घुसने के लिए उसे सीढ़ियों पर चढ़ना था। यह काम बहुत मुश्किल था। लेकिन अमित नाम के एक लड़के की मदद से वह सीढ़ियाँ चढ़ गई। उसने अमित को धन्यवाद दिया और कहा-अब मैं दुकान तक खुद पहुँच सकती हूँ। दूकान में पहुंचकर सुनीता ने एक किलो चीनी माँगी। दुकानदार जल्दी में था। उसने चीनी की थैली सुनीता की गोद में डाल दी। सुनीता गुस्सा हो गई। दूसरों की तरह वह भी अपने आप सामान ले सकती थी। उसे दुकानदार का व्यवहार अच्छा नहीं लगा। चीनी लेकर वह अमित के साथ बाहर निकल आयी। वह दुखी थी। उसने अमित से कहा-लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि मैं कोई अजीबोगरीब लड़की हूँ। इसपर अमित ने कहा-शायद तुम्हारी पहिया कुर्सी के कारण ही वे ऐसा व्यवहार करते हैं। उसने सुनीता से पूछा-तुम इसपर क्यों बैठती हो? सुनीता ने जवाब दिया-मैं पैरों से नहीं चल सकती। इस पहिया कुर्सी के पहियों को घुमाकर ही मैं चल-फिर पाती हूँ। फिर भी मैं दूसरे बच्चों से अलग नहीं हूँ। अमित ने उसकी इस बात को स्वीकार नहीं किया। उसने कहा-मैं भी वे सारे काम कर सकता हूँ जो दूसरे बच्चे कर सकते हैं। पर मैं भी दूसरे बच्चों से अलग हूँ। इसी तरह तुम भी अलग हो। सुनीती मानने को तैयार नहीं थी। अमित ने उसे फिर समझाया-हम दोनों बाकी लोगों से कुछ अलग हैं। तुम पहिया कुर्सी पर बैठकर चलती हो। मेरा कद बहुत छोटा है। सुनीता कुछ सोचने लगी। फिर वह अमित के साथ तेजी से सड़क पर आगे बढ़ गई। लोग उन दोनों को घूरते रहे लेकिन सुनीता को उनकी कोई परवाह नहीं थी।
शब्दार्थ : सहारा-सहायता, मदद। फुर्ती-तेजी। रोज़ाना-रोज, प्रतिदिन। टुकुर-टुकुर-एकटक। अजीबोगरीबअनोखा, विचित्र। परवाह-ध्यान, ख्याल
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Answer:
उसे दुकानदार का व्यवहार अच्छा नहीं लगा। चीनी लेकर वह अमित के साथ बाहर निकल आयी। वह दुखी थी। उसने अमित से कहा-लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि मैं कोई अजीबोगरीब लड़की हूँ।