समझदारी के बारे में वर्णन किया गया है। या भी बताया गया है कि जानवर भी प्यार के भी होते है।
मोती राजा साहब की खास सवारी का हाथी था। यों तो वह बहुत सीधा और समझदार था, पर
कभी-कभी उसका मिजाज गरम हो जाता था और वह आपे में न रहता था। उस हालत में उसे किसी
बात की सुधि न रहती थी, महावत का दबाव भी न मानता था। एक बार इसी पागलपन में उसने अपने
महावत को मार डाला। राजा साहब ने यह खबर सुनी तो उन्हें बहुत क्रोध आया। मोती की पदवी छिन
गई। उसे राजा साहब की सवारी से निकाल दिया गया। कुलियों की तरह उसे लकड़ियाँ ढोनी पड़तीं,
पत्थर लादने पड़ते और शाम को वह पीपल के नीचे मोटी जंजीरों से बाँध दिया जाता। रातिब मिलना
बंद हो गया। उसके सामने सूखी टहनियाँ डाल दी जाती थीं और उन्हीं को चबाकर वह भूख की आग
बुझाता। जब वह इस दशा को अपनी पहली दशा से मिलाता तो बहुत चंचल हो जाता। वह सोचता,
'कहाँ मैं राजा का सबसे प्यारा हाथी था और कहाँ आज मामूली मजदूर हूँ।' यह सोचकर जोर-जोर से
चिघाड़ता और उछलता। आखिर एक दिन उसे इतना जोश आया कि उसने लोहे की जंजीर तोड़ डाली
और वह जंगल की तरफ़ भागा।
थोड़ी ही दूर पर एक नदी थी। मोती पहले उस नदी में जाकर खूब नहाया। तब वहाँ से जंगल की
ओर चला। इधर राजा साहब के आदमी उसे पकड़ने के लिए दौड़े मगर मारे डर के कोई उसके पास
जान सका। जंगल का जानवर जंगल ही में चला गया।
जंगल में पहुँचकर मोती अपने साथियों को ढूँढ़ने लगा। वह कुछ दूर और आगे बढ़ा तो जंगल के
हाथियों ने जब उसके गले में रस्सी और पाँव में टूटी जंजीर देखी तो उससे मुँह फेर लिया। उसकी बात
तक न पूछी। उनका शायद मतलब था कि तुम गुलाम तो थे ही, अब नमकहराम गुलाम हो। तुम्हारी
जगह इस जंगल में नहीं है। जब तक वे आँखों से ओझल न हो गए, मोती वहीं खड़ा ताकता रहा। फिर
न जाने क्या सोचकर वहाँ से भागता हुआ महल की ओर चला।
मोती रास्ते ही में था कि उसने देखा, राजा साहब शिकारियों के साथ घोड़े पर चले आ रहे हैं। वह
फ़ौरन एक बड़ी चट्टान की आड़ में छिप गया। धूप तेज थी, राजा साहब जरा दम लेने को घोड़े से
उतरे। अचानक मोती आड़ में से निकल पड़ा और चिंघाड़ता हुआ राजा साहब की ओर दौड़ा। राजा
साहब घबराकर भागे और एक छोटी झोपड़ी में घुस गए। जरा देर बाद मोती भी पहुँचा। उसने राजा
साहब को अंदर घुसते देख लिया था। पहले तो उसने अपनी सूंड से ऊपर का छप्पर गिरा दिया, फिर
उसे पैरों से रौंदकर चूर-चूर कर डाला।
सधि-चिंता रातिब-हाधियों के खाने का अनाज ताकता - देखता
Answers
Answer:
Given :-
Distance covered by the satellite = 450 km
Velocity of the satellite = 120 m/s
To Find :-
Time taken by the satellite.
Analysis :-
Here we are given with the distance and the speed of the satellite.
In order to find the time taken substitute the given values in the question accordingly such that time is equal to distance covered divided by the time taken.
Solution :-
We know that,
d = Distance
s = Speed
t = Time
Using the formula,
\underline{\boxed{\sf Time \ taken=\dfrac{Distance \ covered}{Time \ taken}}}
Time taken=
Time taken
Distance covered
Given that,
Distance (d) = 450 km = 450000
Speed (s) = 120 m/s
Substituting their values,
⇒ t = s/t
⇒ t = 450000/120
⇒ t = 45000/12
⇒ t = 3750 sec
Therefore, the time taken by the satellite is 3750 sec.Given :-
Distance covered by the satellite = 450 km
Velocity of the satellite = 120 m/s
To Find :-
Time taken by the satellite.
Analysis :-
Here we are given with the distance and the speed of the satellite.
In order to find the time taken substitute the given values in the question accordingly such that time is equal to distance covered divided by the time taken.
Solution :-
We know that,
d = Distance
s = Speed
t = Time
Using the formula,
\underline{\boxed{\sf Time \ taken=\dfrac{Distance \ covered}{Time \ taken}}}
Time taken=
Time taken
Distance covered
Given that,
Distance (d) = 450 km = 450000
Speed (s) = 120 m/s
Substituting their values,
r
⇒ t = s/tlt
⇒ t = 450000/120
⇒ t = 45000/12
⇒ t = 3750 sec
Therefore, the time taken by the satellite is 3750 sec.