Samajik daitwa se ap kya samajhte h
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here what i got for ur answer..✍️✍️
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जिस प्रकार प्रेम-प्यार की कोई सीमा नहीं होती, उसी प्रकार सामाजिक दायित्व की भी कोई सीमा नहीं होती. आज सुबह-सुबह एक समाचार ने हमारे सामाजिक दायित्व और मानवता की फरियाद पर हमारा ध्यान आकर्षित किया. सेना का एक ट्रक दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद कश्मीरी युवकों ने जवानों की मदद की. ये वो ही जवान हैं, जो दिन-रात अपने चैन-सुकून को भूलकर, अपनी जान पर खेलकर हमारी सुरक्षा में मुस्तैद रहते हैं. उन पर आपदा आई और कश्मीरी युवकों ने तुरंत अपने सामाजिक दायित्व को निभाया. इन कश्मीरी युवकों के इस सामाजिक दायित्व की भावना को कोटिशः नमन करते हुए हम आगे बढ़ते हैं.
हमारे पुलिसवाले भी अपने नियत सरकारी कर्त्तव्यों के अतिरिक्त ऐसे सामाजिक दायित्व को निभाने में किसी से कम नहीं हैं. आइए एक पुराने और एक नए किस्से का जायज़ा लेते हैं.
पहले कुछ समय पहले के एक किस्से का जायज़ा लेते हैं. आम तौर पर पुलिसवालों को कड़क स्वभाव वाला माना जाता है. कानपुर के एक एसओ तुलसीराम पांडेय का लोगों ने एक अलग मानवीय रूप देखा. वॉट्सऐप पर एक घर की गरीबी का मेसेज बर्रा थाने के एसओ को मिला. वह क्षेत्र में जांच के लिए पहुंचे तो वहां का मंजर देखकर पसीज गए. एक घर में 2 लाशों पर 5 बेटियां और उनकी मां रो रही थीं. विडंबना देखिए, कि परिवार के पास अंतिम संस्कार के पैसे नहीं थे.
बर्रा-वर्ल्ड बैंक कॉलोनी के मनोज दीक्षित को ओरल कैंसर था. इलाज में खेत बिक गए. रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया. 5 बेटियों का स्कूल छूट गया. डॉक्टरों ने जवाब दे दिया. रविवार की सुबह मनोज को खून की उल्टियां करते देखकर मां गायत्री (75) ने दम तोड़ दिया. कुछ देर में मनोज भी चल बसे. मनोज की 5 बेटियां और पत्नी आराधना फूट-फूटकर रोने लगीं. घर में न अनाज था न ही कफन के लिए पैसे. एसओ और सीओ ने मिलकर पैसों का इंतजाम किया. पुलिस की बात सुन शाम तक प्रशासन आगे आया और 5 बेसहारा बच्चों का स्कूल में ऐडमिशन कराया और घर में अनाज भेजा. पुलिस और प्रशासन की संवेदना देखकर आसपास के लोग जुटे और पीड़ित परिवार को मदद दी. शाम को डीएम ने भी 50 हजार की आर्थिक मदद का ऐलान किया. बर्रा थाने के एसओ तुलसीराम पांडेय ने कहा, ‘हमारा सामाजिक दायित्व भी है. किसी रोते को देखकर भी अनदेखा नहीं कर सकते.’ वहीं गोविंदनगर के सीओ विशाल पांडेय ने बताया, ‘दिल से आवाज आई और हमने मदद की. पांच मासूम बच्चियों की चीखें हृदयविदारक थीं.’ मदद करनेवाले सभी लोगों को हमारे कोटिशः नमन.
अब एक हालिया ताज़ातरीन किस्सा, जिसमें ऐसी ही सामाजिक दायित्व की भावना अभी हाल की एक और घटना में देखने को मिली. नक्सलियों और पुलिस के बीच ऐसा रिश्ता शायद ही किसी ने पहले कभी देखा-सुना हो. ऐंटी-नक्सल विंग के दो पुलिसकर्मियों ने शनिवार को दो माओवादियों की खून देकर जान बचाई. ये माओवादी कुछ दिन पहले जीके वीधी मंडल में पेडापडु में एक मुठभेड़ के दौरान बुलेट लगने से घायल हो गए थे. पुलिसकर्मियों ने ब्लड डोनेट किया और प्रमुख सर्जन डॉक्टर श्याम प्रसाद ने घायल माओवादियों का ऑपरेशन किया. विशाखा रूरल एसपी राहुल देव शर्मा ने दोनों माओवादियों की मदद करने के लिए सुरक्षा बल के जवानों की सराहना की. मानवता की लाज रखने वाले इन पुलिसकर्मियों को हमारे कोटिशः नमन.
हम जहां भी हों, जिस रूप में हों, आइए हम भी किसी-न-किसी रूप में अपने सामाजिक दायित्व को निभाने के लिए अपने को सक्षम करें.
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hope it helps u❤️❤️
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जिस प्रकार प्रेम-प्यार की कोई सीमा नहीं होती, उसी प्रकार सामाजिक दायित्व की भी कोई सीमा नहीं होती. आज सुबह-सुबह एक समाचार ने हमारे सामाजिक दायित्व और मानवता की फरियाद पर हमारा ध्यान आकर्षित किया. सेना का एक ट्रक दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद कश्मीरी युवकों ने जवानों की मदद की. ये वो ही जवान हैं, जो दिन-रात अपने चैन-सुकून को भूलकर, अपनी जान पर खेलकर हमारी सुरक्षा में मुस्तैद रहते हैं. उन पर आपदा आई और कश्मीरी युवकों ने तुरंत अपने सामाजिक दायित्व को निभाया. इन कश्मीरी युवकों के इस सामाजिक दायित्व की भावना को कोटिशः नमन करते हुए हम आगे बढ़ते हैं.
हमारे पुलिसवाले भी अपने नियत सरकारी कर्त्तव्यों के अतिरिक्त ऐसे सामाजिक दायित्व को निभाने में किसी से कम नहीं हैं. आइए एक पुराने और एक नए किस्से का जायज़ा लेते हैं.
पहले कुछ समय पहले के एक किस्से का जायज़ा लेते हैं. आम तौर पर पुलिसवालों को कड़क स्वभाव वाला माना जाता है. कानपुर के एक एसओ तुलसीराम पांडेय का लोगों ने एक अलग मानवीय रूप देखा. वॉट्सऐप पर एक घर की गरीबी का मेसेज बर्रा थाने के एसओ को मिला. वह क्षेत्र में जांच के लिए पहुंचे तो वहां का मंजर देखकर पसीज गए. एक घर में 2 लाशों पर 5 बेटियां और उनकी मां रो रही थीं. विडंबना देखिए, कि परिवार के पास अंतिम संस्कार के पैसे नहीं थे.
बर्रा-वर्ल्ड बैंक कॉलोनी के मनोज दीक्षित को ओरल कैंसर था. इलाज में खेत बिक गए. रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया. 5 बेटियों का स्कूल छूट गया. डॉक्टरों ने जवाब दे दिया. रविवार की सुबह मनोज को खून की उल्टियां करते देखकर मां गायत्री (75) ने दम तोड़ दिया. कुछ देर में मनोज भी चल बसे. मनोज की 5 बेटियां और पत्नी आराधना फूट-फूटकर रोने लगीं. घर में न अनाज था न ही कफन के लिए पैसे. एसओ और सीओ ने मिलकर पैसों का इंतजाम किया. पुलिस की बात सुन शाम तक प्रशासन आगे आया और 5 बेसहारा बच्चों का स्कूल में ऐडमिशन कराया और घर में अनाज भेजा. पुलिस और प्रशासन की संवेदना देखकर आसपास के लोग जुटे और पीड़ित परिवार को मदद दी. शाम को डीएम ने भी 50 हजार की आर्थिक मदद का ऐलान किया. बर्रा थाने के एसओ तुलसीराम पांडेय ने कहा, ‘हमारा सामाजिक दायित्व भी है. किसी रोते को देखकर भी अनदेखा नहीं कर सकते.’ वहीं गोविंदनगर के सीओ विशाल पांडेय ने बताया, ‘दिल से आवाज आई और हमने मदद की. पांच मासूम बच्चियों की चीखें हृदयविदारक थीं.’ मदद करनेवाले सभी लोगों को हमारे कोटिशः नमन.
अब एक हालिया ताज़ातरीन किस्सा, जिसमें ऐसी ही सामाजिक दायित्व की भावना अभी हाल की एक और घटना में देखने को मिली. नक्सलियों और पुलिस के बीच ऐसा रिश्ता शायद ही किसी ने पहले कभी देखा-सुना हो. ऐंटी-नक्सल विंग के दो पुलिसकर्मियों ने शनिवार को दो माओवादियों की खून देकर जान बचाई. ये माओवादी कुछ दिन पहले जीके वीधी मंडल में पेडापडु में एक मुठभेड़ के दौरान बुलेट लगने से घायल हो गए थे. पुलिसकर्मियों ने ब्लड डोनेट किया और प्रमुख सर्जन डॉक्टर श्याम प्रसाद ने घायल माओवादियों का ऑपरेशन किया. विशाखा रूरल एसपी राहुल देव शर्मा ने दोनों माओवादियों की मदद करने के लिए सुरक्षा बल के जवानों की सराहना की. मानवता की लाज रखने वाले इन पुलिसकर्मियों को हमारे कोटिशः नमन.
हम जहां भी हों, जिस रूप में हों, आइए हम भी किसी-न-किसी रूप में अपने सामाजिक दायित्व को निभाने के लिए अपने को सक्षम करें.
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