Samajik vibhajan ki Rajniti ke parinaam kin 3 Baton per nirbhar Karte Hain
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सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम तीन चीजों पर निर्भर करता है
पहला, लोगअपनी पहचान स्व-अस्तित्व तक ही समिति रखना चाहते है क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में चेतना के अलावा उपराष्ट्रीय या स्थानीय चेतना भी होते है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते तो कोई समस्या नहीं हो सकती। उदाहरणस्वरूप, बेल्जियम के अधिकार लोग खुद को बेल्जियाई ही मानते है, भले डच और जर्मन बोलते है। हमारे देश में भी ज्यादातर लोग अपनी पहचान को लेकर ऐसा ही नजरिया रखते है। भारत विभिन्ताओं का देश है, फिर भी सभी नागरिक सर्वप्रथम अपने को भारतीय।
दूसरा, महत्वपूर्ण तत्व है कि किसी समुदाय या क्षेत्र विशेष की मांगों को राजनितिक दल कैसे उठा रहे है। संविधान के दायरे में आनेवाली और दूसरे समुदाय को नुकसान न पहुचनेवाली मांगों को मान लेना आसान है।
तीसरा, सामाजिक विभाजन बकी राजनीति का परिणाम सरकार के रूप पर भी निर्भर करता है यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार इन प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। अगर भारत में पिछड़ों एवं दलितों के प्रति न्याय की मांग को सरकार शुरू से ही ख़ारिज करती रहती तो आज भारत बिखराव के कगार पर होता, लेकिन सरकार इनके सामाजिक न्याय को उचित मानते हुए सत्ता में साझेदार बनाया और इनको देश की मुख्य धरा में जोड़ने का ईमानदारी से प्रयास किया। फलतः छोटे-मोठे संघर्ष के बावजूद भी भारतीय समाज में समरसता और सामंजस्य स्थापित है।