समकालीन भारतीय राजनीति पर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के प्रभाव पर चर्चा करें
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समकालीन भारतीय राजनीति पर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के प्रभाव
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भारत के संविधान के अनुसार भारत में संघीय व्यवस्था है जिस में नयी दिल्ली में केन्द्र सरकार तथा विभिन्न राज्यों व केन्द्र शासित राज्यों के लिए राज्य सरकार है। इसीलिए, भारत में राष्ट्रीय व राज्य (क्षेत्रीय), राजनीतिक दलों का वर्गीकरण उनके क्षेत्र में उनके प्रभाव के अनुसार किया जाता है। भारत में मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियों की भारत सरकार सूची निम्न है:
भारत में बहुदलीय प्रणाली बहु-दलीय पार्टी व्यवस्था है जिसमें छोटे क्षेत्रीय दल अधिक प्रबल हैं। राष्ट्रीय पार्टियां वे हैं जो चार या अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त हैं। उन्हें यह अधिकार भारत के चुनाव आयोग द्वारा दिया जाता है, जो विभिन्न राज्यों में समय समय पर चुनाव परिणामों की समीक्षा करता है।
राज्य/क्षेत्रीय दलों का विकास:-वे दल जिनके पास एक राज्य में पर्याप्त वोट या सीटें हों, उन्हें चुनाव आयोग द्वारा राज्य पार्टी के रूप में अधिकृत किया जा सकता है। संबंधित राज्य में राज्य दल के रूप में मान्यता मिलने से दल को एक विशेष चुनाव चिन्ह आरक्षित करने का विकल्प मिल सकता है। एक पार्टी को एक या अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त हो सकती है। चार राज्यों में मान्यता प्राप्त पार्टी को स्वतः ही एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त हो जाती है। भारत में क्षेत्रीय दलों का इतिहास काफी पुराना है । हमारे देश में अनेक क्षेत्रीय दली का उदय विशेष परिस्थितियों के परिणामस्वरूप हुआ है । पंजाब में 1920 से ही अकालियों की राजनीति चलती आ रही है । कश्मीर में पहले मुस्लिम कांफ्रेंस बनी जिसे बाद में नेशनल कान्फ्रेंस के नाम से जाना गया । तमिलनाडु में जस्टिस पार्टी का गठन हुआ ।1949 व में द्रमुक पार्टी का गठन हुआ । इसके अतिरिक्त बंगला कांग्रेस, केरल कांग्रेस, उत्कल कांग्रेस जैसे कांग्रेस क्षेत्रीय दलों तथा विशाल हरियाणा पार्टी, गणतंत्र परिषद आदि का भी उदय हुआ है । ये सभी दल अलग-अलग राज्यों में प्रभावशाली है न कि किसी विशेष क्षेत्र में ।
क्षेत्रीय दलों के उदय के कारण:- भारत एक बहुभाषी, बहुजातीय, बहुक्षेत्रीय और विभिन्न धर्मों का देश है । भारत जैसे विशाल एवं विभिन्नताओं से भरे देश में क्षेत्रीय दलों के उदय के अनेक कारण हैं । पहला प्रमुख कारण जातीय, सांस्कृतिक एव भाषायी विभिन्नताएँ हैं । विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की अपनी समस्याएँ होती हैं जिन पर राष्ट्रीय दलों या केन्द्रीय नेताओं का ध्यान नहीं जाता परिणामस्वरूप क्षेत्रीय दलों का उदय होता है । दूसरा केन्द्र अपनी शक्तियों का प्रयोग मनमाने ढंग से करता रहा है । केन्द्र की शक्तियों कें केन्द्रीयकरण की इसी प्रवृत्ति के कारण अनेक क्षेत्रीय दलों का जन्म हुआ है । तीसरा, उत्तरी भारत की प्रधानता को लेकर आशंकाएँ भी क्षेत्रीय दलों के उदय का कारण रहा है । क्षेत्रीय दलों के उदय का चौथा प्रमुख कारण कांग्रेस दल की संगठनात्मक दोष भी है । केन्द्र में कांग्रेस की स्थिति तो मजबूत थी परन्तु राज्यों में कांग्रेस संगठन विखरता जा रहा था ।परिणामस्वरूप कांग्रेस में संगठन संबंधी फूट और कमजोरियाँ आ गई और राज्य स्तर के अनेक नेताओं ने क्षेत्रीय दलों के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई । पाँचवा, क्षेत्रीय दलों उदय का कारण जातीय असंतोष भी रहा है । अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गो के लिए सामाजिक न्याय की माँग हेतु भी क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ है ।
वर्तमान राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका:- भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक गणराज्य है इस नाते इस देश में प्रत्येक व्यक्ति, जाति, वर्ग और समाज की आवाज सत्ता के केन्द्र तक पहुंचे इसकी व्यवस्था की गई है। पिछले कुछ दषकों से हो रहे चुनावों के परिणामों पर गौर करें तो यह समझ आता है कि वर्तमान में ये क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं। क्षेत्रीय दलों के कारण इन राष्ट्रीय दलों को कईं राज्यों में इनका सहारा लेना पड़ता है और हालात ये है कि भारतीय जनता पार्टी जो वर्तमान में केन्द्र की सत्ता में उसका कईं राज्यों में वजूद तक नहीं है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस जिसने सबसे लम्बे समय तक देश में राज किया है वह अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रही है। क्षेत्रीय दलों के बढ़े प्रभाव ने इन राष्ट्रीय दलों के समक्ष कईं जगह तो अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। वर्तमान राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण हो गई है ।