समर्पित, तन समर्पित, और यह जीवन समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूं। मॉ तुम्हारा ऋण बहुत है, मै अकिंचन, किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन। थाल में लाऊँ सजाकर भाल. जब भी, कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण। (क) कविता का सार बताएँ। (ख) अकिंचन शब्द का अर्थ बताएँ? (ग) प्रस्तुत पंक्ति में सर्वस्व सर्मपण के बाद भी कवि असंतुष्ट क्यों है? (घ) कवि मातु भुमि से क्या निवेदन कर रहा है? (ड.) सर्मपित शब्द में कौन सा उपसर्ग
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