समरथ को नहिं दोष गोसाँई - पर निबंध लिखें
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इस कहावत का अर्थ है- समर्थ व्यक्ति को किसी भी प्रकार का दोष नहीं लगता। समर्थ अर्थात् शक्तिशाली व्यक्ति कुछ भी कर ले, कोई उस पर टीका-टिप्पणी नहीं करता। विशेष कमजोर व्यक्ति ही सभी की नजरों में रहता है। सभी उसकी कमियाँ ढूँढ कर निकालते हैं। कहा भी जाता है- ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ अर्थात् ताकतवर की ही सब बातें ठीक होती हैं। इसका कारण यह है कि समर्थ व्यक्ति का समाज पर दबदबा रहता है। वह किसी की आलोचना का पात्र नहीं बनता। सभी उसको ंखुश करने में लगे रहते हैं। इसमें उन्हें अपना लाभ भी दिखाई देता है।
अब प्रश्न उठता है कि समरथ कौन है? ताकतवर व्यक्ति ही समरथ होता है। यह ताकत शरीर की भी होती है और धन की भी होती है। समाज में दोनों प्रकार के लोगों का दबदबा रहता है। उनकी किसी भी बात को दोषपूर्ण नहीं माना जाता। समर्थ व्यक्ति सभी कुछ कर सकता है। असमर्थ व्यक्तियों को उनका अन्याय सहना ही पड़ता है। कोई उनके दोष नहीं गिनता।
आज की राजनीति भी बाहुबलियों के बलबूते पर चलती है। ये समर्थ बाहुबली जिधर चाहते हैं उधर ही राजनीति का पहिया घुमा ले जाते हैं। इसमें जनमत को अपनी दिशा में करने की क्षमता होती है। गाँवों में एक कहावत है- ‘कमजोर की जोरू सबकी भाभी’ ये समर्थ व्यक्ति पुराने समय में जमींदार हुआ करते थे। जमींदार शोषण के पर्याय बन गए थे। वे धन और ताकत के बलबूते पर किसी स्त्री का बलात्कार तक डालते थे और को चूँ तक नहीं कर पाता था।
स्वतंत्रता की बात कहने-सुनने में बड़ी भली प्रतीत होती है, पर सत्ता पर काबिज समरथ लोग ही होते हैं। भला कमजोर को कौन पूछता है? यहाँ तक कि समर्थ देश ही दूसरे कमजोर देश को हड़प कर जाते हैं और बाकी देश चुपचाप तमाशा देखते रह जाते हैं। यही दशा समाज की भी है। समर्थ व्यक्ति समाज को अपनी लाठी से हाँकता है और बाकी जनता भेड़ की तरह उसके पीछे हो लेती है।
यद्यपि अब लोग उतने भोले नहीं रह गए हैं। वे समर्थ व्यक्ति के अन्याय को समझते भी हैं, पर उसका प्रतिकार करने का साहस नहीं जुटा पाते। उनके मन का विरोध, मन का गुस्सा मन में ही रह जाता है। सर्वत्र शक्ति की पूजा होती है।
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अब प्रश्न उठता है कि समरथ कौन है? ताकतवर व्यक्ति ही समरथ होता है। यह ताकत शरीर की भी होती है और धन की भी होती है। समाज में दोनों प्रकार के लोगों का दबदबा रहता है। उनकी किसी भी बात को दोषपूर्ण नहीं माना जाता। समर्थ व्यक्ति सभी कुछ कर सकता है। असमर्थ व्यक्तियों को उनका अन्याय सहना ही पड़ता है। कोई उनके दोष नहीं गिनता।
आज की राजनीति भी बाहुबलियों के बलबूते पर चलती है। ये समर्थ बाहुबली जिधर चाहते हैं उधर ही राजनीति का पहिया घुमा ले जाते हैं। इसमें जनमत को अपनी दिशा में करने की क्षमता होती है। गाँवों में एक कहावत है- ‘कमजोर की जोरू सबकी भाभी’ ये समर्थ व्यक्ति पुराने समय में जमींदार हुआ करते थे। जमींदार शोषण के पर्याय बन गए थे। वे धन और ताकत के बलबूते पर किसी स्त्री का बलात्कार तक डालते थे और को चूँ तक नहीं कर पाता था।
स्वतंत्रता की बात कहने-सुनने में बड़ी भली प्रतीत होती है, पर सत्ता पर काबिज समरथ लोग ही होते हैं। भला कमजोर को कौन पूछता है? यहाँ तक कि समर्थ देश ही दूसरे कमजोर देश को हड़प कर जाते हैं और बाकी देश चुपचाप तमाशा देखते रह जाते हैं। यही दशा समाज की भी है। समर्थ व्यक्ति समाज को अपनी लाठी से हाँकता है और बाकी जनता भेड़ की तरह उसके पीछे हो लेती है।
यद्यपि अब लोग उतने भोले नहीं रह गए हैं। वे समर्थ व्यक्ति के अन्याय को समझते भी हैं, पर उसका प्रतिकार करने का साहस नहीं जुटा पाते। उनके मन का विरोध, मन का गुस्सा मन में ही रह जाता है। सर्वत्र शक्ति की पूजा होती है।
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