समसामयिक विषयों पर निबंध (तीन)
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Answer: 1. आई बरखा लाइ हरखा
ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा ऋतु का आगमन अत्यंत सुखदाई होता है । चारों तरफ वातावरण मनोरम होने लगता है । गर्मी के प्रकोप से प्रकृति का संतप्त कलेवर , नदियों तालाबों का सूखा जल , झुलसा देने वाली लू तथा पशु - पक्षी और नर-नारी सभी का तप्त तन-मन तब आल्हादित हो उठता हैं जब धरती पर इस तपिश और जलन को दूर करने हेतु वर्षा ऋतु का आगमन होता है । हमारे अन्नदाता किसानों की आँखें आकाश पर इसी वर्षा की ओर टकटकी लगाए रहती है । जैसे ही बादलों की सेना आने लगती हैं वैसे ही प्रकृति मुस्कुरा उठती है ।
जल से भरे यह बादल सभी को बहुत सुखदायी लगते हैं । इन बादलों को देखकर कवि की कल्पना उड़ान भरने लगती हैं । वर्षा ऋतु का आगमन होते ही चारों ओर हरियाली छा जाती है । किसानों के जीवन में नई आशा का संचार होने लगता है । बिजली की चमक , कारे कजरारे बादल, ठंडी ठंडी पवन अनुपम सौंदर्य के विविध रूपों में बिखर जाती है । छोटे-छोटे बच्चे इन पानी की लहरों में कागज की नाव बनाकर अपने बचपन को कृतार्थ कर लेते हैं और वर्षा में नहा कर इसका आनंद लूटते हैं जिसे शब्दों में बयां करना कुछ कठिन है |
2 . इंटरनेट
संचार क्षेत्र में चमत्कारिक परिवर्तनों के कारण कई प्रकार की भौतिक सुविधाओं का विकास हुआ है । इसी कड़ी में इंटरनेट त्वरित संप्रेषण का मुख्य साधन है । इंटरनेट लोगों के लिए एक दैनिक आवश्यकता बन गया है | इसके बिना रहना लोगों को रास नहीं आता | व्यक्ति को अधूरेपन का एहसास होता है। मानव का जीवन इस सेवा से कई पहलुओं में आसान हुआ है इसीलिए इंटरनेट के बगैर प्रत्येक व्यक्ति को असुविधा होती हैं।
वर्तमान में जन समुदाय ने मोबाइल फोन में अनेकानेक सेवा प्रदाताओं (सर्विस प्रोवाइडर)के माध्यम से इंटरनेट को जोड़ कर इतनी सुविधा प्राप्त कर ली है कि प्रयोग करने वाला सारा दिन व्यस्त रहता है । विभिन्न खेल, कैमरा, आनलाईन खरीददारी तथा कई सारी एप्लीकेशन इंटरनेट के माध्यम से मोबाइल फोनपर ही उपलब्ध हो जाती है । जिससे लोगों को अपने कार्य संपादित करने में आसानी होती है । यही कारण है कि आज प्रत्येक हाथ में मोबाइल है । इसकी उपलब्धता आम आदमी के बस में हो गई है । समाज का छोटा तबका भी मोबाइल में डेटा पॅक पर इंटरनेट द्वारा आवश्यकतानुसार गतिविधियों के संचालन में जुटा हुआ है। सकल विश्व इसके जरिए एक दूसरे से संपर्क स्थापित कर रहा हैं और अनेकानेक पहलुओं की जानकारी से अद्यतन रहने को चेष्टारत है। आज लोगों के पास समय बहुत कम है । इंटरनेट से लोगों को समय बचाने के कई विकल्प प्राप्त हुए हैं।
इसका दूसरा पहलू भी हैं | सुविधाओं के साथ साथ असुविधाएं भी आती है | आजकल तो हर चीज ऑनलाइन मिलने लगी है | जहाँ एक ओर इसके द्वारा व्यवसाय को गति प्राप्त हुई है वहीँ प्रतिष्ठित वर्ग इसमें बड़ी बड़ी कंपनियों के ऑफर्स में फंसकर कर अपना समय व पैसा दोनों बर्बाद करते हैं । युवा-पीढ़ी चैटिंग के माध्यम से अपना समय अध्ययन के अपेक्षा इसमें लगाती हैं । आज कई तरह की नकली साइट्स आ गई है जो सब नए-नए एप्लीकेशंस के माध्यम से गलत एवं नकली चीजों और ऐसी तस्वीरों का प्रचार-प्रसार कर रही है जो बच्चों को समय से पहले ही बड़ा कर रही है | जोहानिकारक है | ऐसे एप्लीकेशंस भी है जिसे डाऊनलोड करके हमारे बच्चें हताशापूर्ण आत्महनन जैसी प्रवृतियों की ओर भी झुके है | जरूरतोंकी पूर्ति के साथ-साथ हमें कई परेशानियां भी उठानी पड़ी है । इस हानि से स्वयं को बचाने के लिए सावधान, सजग एवं सतर्क रहना चाहिए |
3. चलचित्र के प्रभाव
मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन है चलचित्र | अमीर - गरीब सभी स्तर के लोग चलचित्र द्वारा अपना मनोरंजन करते हैं | आधुनिक विज्ञान का सबसे रुचिकर आविष्कार चलचित्र है | चलचित्र हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है | बड़े-बड़े शहरों से लेकर कस्बों में तथा गांवों में भी सिनेमाघर खुले हुए हैं | अब तो टी. वी. में कभी भी पिक्चर देखे जा सकते है | मनोरंजन की दृष्टि से सभी अपनी थकान को मिटाने का जरिया उसे ही मानते हैं और उसे देखकर अपनी चिंता से मुक्त होकर ताजगी अनुभव करते हैं | उत्तम कोटि के चलचित्र समाज सुधार का अनोखा काम करते हैं जैसे - बेकारी, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, श्रम की महिमा, देशप्रेम, भाईचारा तथा नैतिकता के आधार पर बने हुए चलचित्र लोगों विशेषकर युवावर्ग को सुधार की प्रेरणा देते हैं |
कई चलचित्र केवल फायदे के लिए बनाए जाते हैं | जिसका नैतिक मूल्य शून्य होता है | आज के युग में कई निर्देशक ऐसी फिल्में बनाना चाहते हैं जिनके द्वारा वे अधिक पैसा कम समय में कमा सके और यही कारण है कि चित्रपटों का स्तर धीरे-धीरे गिरता जा रहा है और इसका दूषित प्रभाव हमारी युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है | आज के चलचित्रों में हमें पाश्चात्य जगत का प्रभाव पूर्ण रूप से देखने को मिलता है यही कारण है कि वहां की संस्कृति तथा अश्लील एवं हिंसात्मक दृश्य आधुनिकता के नाम पर हमारी युवा पीढ़ी को धड़ल्ले से परोसे जा रहे हैं | इसके प्रभाव दूरगामी होते हैं |
आज हमारी युवा पीढ़ी चलचित्रों में नकारात्मक कथावस्तु, भद्दे गीतो और अश्लील दृश्य देखने के कारण गलत दिशा में जा रही है | ऐसी फिल्में हत्या, शोषण, चोरी, डकैती, तस्करी और चारित्रिक हनन जैसी बुराइयों को जन्म देती है |
यदि हमारे निर्माता अच्छे स्वदेशी समस्याओं जैसे विषयों पर चलचित्र बनाएं तो वे नि:संदेह समाज में उत्थान का एक सरल साधन बन सकते है | जो काम बड़े-बड़े उपदेशक नहीं कर सकते वह काम चलचित्र सरलता से कर सकता है क्योंकि यह समूचे समाज में प्रदर्शित होने वाला वह जरिया है जो जन -जन तक पहुंचता है | नेता समाज को प्रगतिशील बनाने में भले ही पीछे रहे परंतु अभिनेता इस कार्य में पूरी तरह सफल हो सकते हैं | यदि उनके द्वारा ऐसी फिल्मों का चयन किया जाए जो सामाजिक दृष्टि से मानवीय पक्षों का उत्थान कर सके, विकास कर सके, तथा उसके नैतिक मूल्यों का वर्धन कर सकें तो युवा वर्ग इससे प्रेरणा पाकर एक आदर्श समाज का निर्माण करेगा |