समस्त राज्य के दो ही वर्ग हो यह किसकी मान्यता है
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Answer: लोकतन्त्र (संस्कृत: प्रजातन्त्रम् ) (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत में लोक, "जनता" तथा तंत्र, "शासन",) या प्रजातन्त्र एक ऐसी शासन व्यवस्था और लोकतान्त्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है।
समस्त राज्य के दो ही वर्ग है यह किसकी मान्यता है?
समस्त राज्य के दो ही वर्ग हो यह कार्ल मार्क्स की मान्यता है।
मार्क्स ने अपना वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त अपनी प्रसिद्ध कृतियों 'Das Capital' तथा 'Communist Manifesto' में प्रस्तुत किया। मार्क्स का विचार है कि मनुष्य यद्यपि एक सामाजिक प्राणी है, किन्तु वह एक वर्ग प्राणी भी है। कार्ल मार्क्स का विचार है कि यदि ऐतिहासिक आधार पर समाज का विश्लेषण किया जाए तो यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि समाज सदैव दो वर्गों में विभक्त रहा है। प्रारम्भ में समाज स्त्री और पुरुष दो वर्गों में विभक्त था, उसके उपरान्त समाज के कुछ वर्गों ने प्रकृति पर अधिकार कर लिया तथा दूसरा वर्ग इससे वंचित रह गया अर्थात् समाज दो वर्गों में विभक्त हो गया। मार्क्स का विचार है कि समय व परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ-साथ नये-नये वर्गों का उदय होता रहा है। इनके अनुसार वर्गों का निर्माण भौतिक विभाजन के आधार पर होता है। वर्ग वास्तव में आर्थिक वर्ग हैं, जो उत्पादन की प्रणाली या आधार पर विकसित होते हैं। वस्तुओं के वितरण का अन्तर ही वर्ग-भेद का कारण है।
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