Samay ka palan conversation between student and teachers
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आज के समय में ज्ञान से ज्यादा धन को महत्व दिया जाता है।
- निस्वार्थ पढ़ाना पुरानी बात थी पर अाज के समय में टीचर्स इस सोच को बहुत पीछे छोड़ आए हैं।
- शिक्षक के ज्ञान की तुलना आज किताबों के ज्ञान से की जा रही है।
- पहले छात्रों को विश्वास होता था कि शिक्षक कभी उसके साथ कुछ गलत नहीं होने देगा, पर क्या आज का छात्र ऐसा सोच सकता है?
शायद नहीं क्योकि हमारे समाज ने हर रिश्ते को गंदा कर दिया है। आए दिन हम न जाने कितने किस्से सुनते है। कुछ ऐसे किस्से जिनके बारे में सोचने से भी डर लगता है। उत्तराखंड के ललितपुर में गुरु और शिष्य के रिश्तों को शर्मसार करने की घटना सामने आई थी तो दूसरी तरफ इटावा में हुए शिष्या के साथ रेप ने इस रिश्ते को पूरी तरह से हिला दिया था। पर इसका मतलब ये नहीं है कि सबकी सोच एक जैसी होती है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनकी लोग आज तक मिसाल दिया करते हैं। जैसे -
आरुणि - एक ऐसा शिष्य जिसने गुरु द्वारा बोले वचन को आदेश मानकर टूटी मेड़ पर लेट गया, जिससे पानी दूसरी पार न जा सकें। आरुणि का शरीर सर्दी से अकड़ने लगा किंतु उसे तो एक ही धुन... गुरु की आज्ञा का पालन। इसी तरह गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य, जिसने दक्षणा के रूप में अपना अंगूठा अपने गुरु को दे दिया। जब बात गुरु शिष्य की आती है तो हम परशुराम और कर्ण को भी याद करते हैं, जिसने अपने आप को कीड़े से कटवा लिया पर अपने गुरु की नींद में खलन न पढ़ने दिया।
रिश्ता आज भी वहीं है बस इसके प्रति हमारी सोच बदल गई है, जिसका समय के साथ बदलना जरूरी भी था।