Samay ka sabupyoga
Samay nirantar gattiman
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समय चक्र की गति बड़ी अदभुत है । इसकी गति में अबादता है । समय का चक्र निरन्तर गतिशील रहता है रुकना इसका धर्म नहीं है ।
”मैं समय हूँ मैं किसी की प्रतीक्षा नहीं करता मैं निरन्तर गतिशील हूँ मेरा बीता हुआ एक भी क्षण लौट कर नही आता है । जिसने भी मेरा निरादर किया वह हाथ मलता रह जाता है । सिर धुन-धुन कर पछताता है ।”
समय के बारे में कवि की उपर्युक्त पंक्तियाँ सत्य हैं विश्व में समय सबसे अधिक महत्वपुर्ण एवं मूल्यवान धन माना गया है । यदि मनुष्य की अन्य धन संपति नष्ट हो जाए तो संभव है वह परिश्रम, प्रयत्न एवं संघर्ष से पुन: प्राप्त कर सकता है कितुं बीता हुआ समय वापस नहीं आता । इसी कारण समय को सर्वाधिक मूल्यवान धन मानकर उसका सदुपयोग करने की बात कही जाती है ।
समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता । वह निरंतर गतिशील रहता है कुछ लोग यह कहकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं कि अभी समय अच्छा नहीं जब अच्छा समय आएगा तब कोई काम कर लेंगे । ऐसे लोग भूल जाया करते हैं कि समय आया नहीं करता वह तो निरंतर जाता रहता है और सरपट भगा जा रहा है ।
हम निरंतर कर्म करते रहकर ही उसे अच्छा बना सकते हैं । अच्छे कर्म करके, स्वयं अच्छे रहकर ही समय को अच्छा, अपने लिए प्रगतिशील एवं सौभाग्यशाली बनाया जा सकता है । उसके सिवाय अन्य कोई गति नहीं । अन्य सभी बाते तो समय को व्यर्थ गंवाने वाली ही हुआ करती हैं । और बुरे कर्म तथा बुरे व्यवहार अच्छे समय को भी बुरा बना दिया करते हैं ।
समय के सदुपयोग में ही जीवन की सफलता का रहस्य निहित है जो व्यक्ति समय का चक्र पहचान कर उचित ढंग से कार्य करें तो उसकी उन्नति में चार चाँद लग सकते हैं । कहते हैं हर आदमी के जीवन में एक न एक क्षण या समय अवश्य आया करता है कि व्यक्ति उसे पहचान-परख कर उस समय कार्य उपयोग करें तो कोई कारण नहीं कि उसे सफलता न मिल पाए ।
समय का सदुपयोग करने का अधिकार सभी को समान रूप से मिला है । किसी का इस पर एकाधिकार नहीं है । संसार में जितने महापुरुष हुए हैं वे सभी समय के सदुपयोग करने के कारण ही इस पर पहुँच सके हैं । काम को समय पर संपन्न करेना ही सफलता का रहस्य है ।
लोक-जीवन में कहावत प्रचलित है कि पलभर का चुका आदमी कोसों पिछड़ जाया करता है । उस उचित पथ को पहचान समय पर चल देने वाला आदमी अपनी मंजिल भी उचित एवं निश्चित रूप से पा लिया करता है । स्पष्ट है कि जो चलेगा वो तो कहीं न कहीं पहुँच पाएँगा । न चलने वाला मंजिल पाने के मात्र सपने ही देख सकता है, व्यवहार के स्तर पर उसकी परछाई का स्पर्श ही देख सकता है ।
अत: तत्काल आरंभ कर देना चाहिए । आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए । कोई कार्य छोटा हो या बड़ा यह भी नहीं सोचना चाहिए । वास्तव में कोई काम छोटा या बड़ा नहीं हुआ करता है । अच्छा और सावधन मनुष्य अपनी अच्छी नीयत, सद्व्यवहार और समय के सदुपयोग से छोटे या सामान्य कार्य को भी बड़ा और विशेष बना दिया करता है ।
विश्व के आरंभ से लेकर आज तक के मानव जो निरंतर रच रहा है, वह सब समय के सदुपयोग से ही संभव हुआ और हो रहा है । यदि महान कार्य करके नाम यश पाने वाले लोग आज भी आज-कल करते हुए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते तो जो सुख आनंद के तरह-तरह के साध्य उपलब्ध हैं वे कतई और कभी न हो पाते । मनुष्य और पशु में यही तो वास्तविक अंतर और पहचान है कि मनुष्य समय को पहचान उसका सदुपयोग करना जानता है, जबकि पशु-पक्षियों के पास ऐसी पहचान-परख और कार्य शक्ति नही रहा करती ।
मानव जीवन नदी की एक धरा के समान है जिस प्रकार नदी की धरा अबाध गति से प्रवाहित होती रहती है ठीक उसी प्रकार मानव-जीवन की धरा भी अनेक उतार-चढ़ावों से गुजरती हुई गतिशील रहती है । प्रकृति का कण-कण हमें समय पालन की सीख देता है ।
अत: मनुष्य का कर्त्तव्य है जो बीत गया उसका रोना न रोए अर्थात वर्तमान और भविष्य का ध्यान करें इसलिए कहा है- ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई’ । एक-एक साँस लेने का अर्थ है समय का एक अंश कम हो जाना जीवन का कुछ छोटा होना और मृत्यु की और एक-एक कदम बढ़ाते जाना ।
पता नहीं कब समय समाप्त हो जाए और मृत्यु आकर साँसों का अमूल्य खजाना समेट ले जाए । इसलिए महापुरुषों ने इस तथ्य को अच्छी तरह समझकर एक साँस या एक पल को न गवाने की बात कही है । संत कबीर का यह दोहा समय के सदुपयोग कराने व प्रतिपादित करने वाला है ।
“काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब ।’’