समय का महत्व पर लघू कथा
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आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों में से एक छात्र बहुत आलसी था. उसे समय व्यर्थ गंवाने और आज का काम कल पर टालने की बुरी आदत थी. साधु को इस बात का ज्ञान था. इसलिए वे चाहते थे कि शिक्षा पूर्ण कर आश्रम से प्रस्थान करने के पूर्व वह छात्र आलस्य छोड़कर समय का महत्व समझ जाए.
इसी उद्देश्य से एक दिन संध्याकाल में उन्होंने उस आलसी छात्र को अपने पास बुलाया और उसे एक पत्थर देते हुए कहा, “पुत्र! यह कोई सामान्य पत्थर नहीं, बल्कि पारस पत्थर है. लोहे की जिस भी वस्तु को यह छू ले, वह सोना बन जाती है. मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ. इसलिए दो दिनों के लिए ये पारस पत्थर तुम्हें दे रहा हूँ. इन दो दिनों में मैं आश्रम में नहीं रहूंगा. मैं पड़ोस के गाँव में रहने वाले अपने एक मित्र के घर जा रहा हूँ. जब वापस आऊंगा, तब तुमसे ये पारस पत्थर ले लूंगा. उसके पहले जितना चाहो, उतना सोना बना लो.”
छात्र को पारस पत्थर देकर साधु अपने मित्र के गाँव चले गए. इधर छात्र अपने हाथ में पारस पत्थर देख बड़ा प्रसन्न हुआ. उसने सोचा कि इसके द्वारा मैं इतना सोना बना लूंगा कि मुझे जीवन भर काम करने की आवश्यकता नहीं रहेगी और मैं आनंदपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर पाऊँगा.