समय ओर बुद्धि का तालमेल निबध
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पढ़े-लिखे लोगों पर अनपढ़ राज करेंगे तो ऐसा ही होगा..। यह टिप्पणी अकसर उस समय सुनने को मिलती है, जब कोई बड़ी राजनीतिक घटना हो जाती है। देश में ऐसे हालात बन जाते हैं तो लोग कहते हैं राजनेता नौकरशाहों के हाथों में खेल रहे हैं, नौकरशाह राजनेताओं से दबे हैं। यह तो तय है कि राजनेताओं के मुकाबले नौकरशाह अधिक पढ़े-लिखे हैं। राजनेता के पास जनसमर्थन है और प्रजातंत्र में वह आम जनता का प्रतिनिधि बनकर आया होता है। लेकिन, पढ़ा-लिखा नौकरशाह जानता है कि यदि मैं घोड़ा हूं तो सवार को किस तरह से कब्जे में करना है। सवार घोड़े पर बैठने के बाद सिर्फ इतना जानता है कि मैं घुड़सवार हूं। वह यह भूल जाता है कि मुझे घोड़ा लेकर कहीं पहुंचना भी है। हमारे देश, समाज में कई बार जब अप्रिय निर्णय होते हैं तो उसके पीछे कारण यही होता है कि जिन्हें समझ नहीं है, कोई सोच नहीं, उन्हें अधिकार दे दिए जाते हैं। कीमत आम जनता चुकाती है। चलिए, यह बाहरी दृश्य है, इसका आध्यात्मिक पक्ष भी देखिए। मन बुद्धि के मुकाबले कम पढ़ा-लिखा है। ऐसे में मन के कहने पर बुद्धि चलेगी तो वही दृश्य बनते हैं कि अनपढ़ पढ़े-लिखों पर राज करने लगे। लेकिन बुद्धि यदि चूक जाए, अपना दुरुपयोग कराने पर उतर आए तो मन को क्या दिक्कत है? आदमी जब चरित्र से गिरता है, आचरण से भटकता है उसका कारण होता है मन और बुद्धि में तालमेल न होना। प्रयास कीजिए मन के कहने पर बुद्धि न चले, बुद्धि के नियंत्रण में मन रहे