समय पालन के बारे में अपना मत व्यक्त कीजिए
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समय का पालन एक बहुत बड़ा गुण है। नियत समय पर निर्धारित काम करने की आदत शरीर और मन का सन्तुलन बनाये रहती है और वे अपना काम ठीक तरह करते रहते हैं। इसके विपरीत यदि अस्त-व्यस्त जीवनचर्या रखी जाय, किसी काम का कोई निर्धारित समय न रहे तो इसका प्रभाव शरीर एवं मन की स्वस्थता एवं प्रगति पर बहुत बुरा पड़ता है।
प्राणी का अचेतन मन उसे नियत समय पर नियत काम करने की प्रेरणा देता है और उसके लिए आवश्यक सामर्थ्य भी विभिन्न अवयवों में उत्पन्न करता है। इस प्रकृति व्यवस्था का ठीक प्रकार उपयोग करके शरीर निर्वाह तथा लोक-व्यवहार में हम प्रकृति का अभीष्ट सहयोग प्राप्त कर सकते हैं। नियत समय पर निर्धारित काम करने की व्यवस्थित दिनचर्या अपनाने की आदत बनाकर हम समग्र स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं और हाथ में लिए हुए कामों को सहज ही सफल बना सकते हैं।
कीड़े-मकोड़े और पक्षियों में यह विशेषता पाई जाती है कि वे अपने भीतर की किसी अज्ञात घड़ी के मार्ग-दर्शन से अपनी गतिविधियाँ पूर्णतया व्यवस्थित रखते हैं। फलतः प्रकृति उनके नगण्य से शरीर और मन को अपना जीवनयापन बहुत ही सुविधापूर्वक करते रहने के साधन जुटाये रहती है। यदि ये प्राणी नियमितता की आदत छोड़ दे तो निश्चय ही उनका जीवनयापन नितान्त कठिन बन जायगा।
जीव-जन्तुओं की अपनी आदत के अनुसार विभिन्न समयों पर विभिन्न कार्य नियमित रूप से करते हुए देखा गया है। मुर्गा समय पर बाँग देता है, रात सियार नियत समय पर रोते हैं, पक्षी प्रातःकाल अपने निर्धारित क्रम से चहचहाते हैं, चमगादड़ रात को ही उड़ते हैं, उल्लू और बाज रात में ही अपने शिकार ढूंढ़ते हैं। प्राणियों की अनेकों महत्वपूर्ण आदतें नियत समय पर क्रियान्वित होती हैं।
इसका क्या कारण हो सकता है इस प्रश्न के उत्तर में पिछले दिनों यही कहा जाता रहा है कि यह प्रकृति के परिवर्तन का प्रभाव है। रात और दिन के बदलते हुए प्रभाव प्राणियों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं और उसकी उत्तेजना से वे नियत समय पर नियत कार्य करने को प्रेरित होते हैं।
यह पिछला समाधान अब अमान्य ठहरा दिया गया है क्योंकि सूर्य की गतिशीलता के कारण उत्पन्न होने वाले प्रभावों से पूरी तरह बचाकर रखने पर भी प्राणी नियत समय पर, नियत कार्य करने के लिए तत्पर रहते देखे जाते हैं। तिलचट्टों को एक कृत्रिम वातावरण में रख गया। जहाँ प्रकाश, अन्धकार, शान्ति, कोलाहल, सर्दी-गर्मी की दृष्टि से सदा एक जैसी स्थिति रहती थी। समय के अन्तर को पहचानने का कोई साधन उस वातावरण में नहीं था। तो भी तिलचट्टों ने नियत समय पर अपनी नियत हरकतें आरम्भ कर दीं।