Samkaleen samaj me shiksha ki kya bhoomika hai?
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समकालीन विश्व में अग्रणी था। मानव सभ्यता के विकास में भारतीय मनीषा का आधारभूत योगदान है। आज स्थिति हालांकि भिन्न है। भारत स्वतंत्रता के लगभग सात दशकों के बाद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में अपना अभीष्ट स्थान सुनिश्चित नहीं कर पाया है। आज तक, स्वतंत्रता के लगभग सात दशक के बाद भी, विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों के गुणानुक्रम में भारतीय विश्वविद्यालय स्थान नहीं पा सके हैं। यह स्थिति विडंबनात्मक है क्योंकि भारतीय मेधा का लोहा दुनियाँ मानती है। इस विडंबना की जड़ें गहरी हैं। बाह्य आक्रान्ताओं से पराजय और तत्पश्चात् अधीनता की लम्बी कालावधि में भारत में शिक्षा का पराभव होना तय था और वैसा हुआ भी। पराभव के दौर में ही, ऐसा रेखांकित करना सर्वथा प्रासंगिक है कि, उस प्राच्य शिक्षा परम्परा की अदम्य शक्ति भी सिद्ध हुई। लगभग एक सहस्राब्दी की दासता और दमन के बावजूद भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अस्मिता अक्षुण्ण रही। ऐसा पूरे विश्व में कहीं संभव नहीं हुआ था। आज वैश्विक महाक्रांति के इस दौर में चुनौती यह नहीं है कि भारत विश्व के समक्ष अपनी शिक्षा व्यवस्था की स्तरीयता सिद्ध करे बल्कि यह है कि यह स्वयं सहित पूरे विश्व को संक्रमण के इस दौर में मार्गदर्शन करे। यह तय है कि इस लक्ष्य के निमित्त प्रयास को सफल बनाने में शिक्षा की भूमिका आधारभूत होगी। आलेख में समकालीन परिदृश्य को दृष्टिगत करते हुए भारतीय शिक्षा और शिक्षक की स्थिति को लेकर विचारार्थ कतिपय बिंदु प्रस्तावित हैं।
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