Hindi, asked by yadavds100, 1 year ago

Sampradayikta ek vikat samasya par nibandh


yadavds100: Tell fast

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Answered by anshuman1xjejdjnei
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Answered by sharmababita10021986
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साम्प्रदायिकता से प्रभावित व्यक्ति, समाज और राष्ट्र एक-दूसरे के प्रति असद्भावों को पहुँचाता है। धर्म और धर्म नीति जब मदान्धता को पुन लेती है। तब वहाँ साम्प्रदायिकता उत्पन्न हो जाती है। उस समय धर्म-धर्म नहीं रह जाता है वह तो काल का रूप धारण करके मानवता को ही समाप्त करने पर तुल जाता है।

भारत विश्व में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है. वह स्वयं एक संसार है. इसमें अनेक भाषाओं, अनेक जातियों और अनेक धर्मों के लोग रहते हैं. उनके खान-पान, वेशभूषा और रीति-रिवाज भी अलग-अलग है. यह एकमात्र ऐसा देश है, जहां सबसे अधिक भाषाएं बोली जाती है. हिंदू बहुसंख्यक है, किंतु साथ ही मुसलमान, सिख, इसाई, पारसी आदि सभी यहां के समान स्तर के समान अधिकार के नागरिक हैं. सभी धर्मावलंबी अपने तौर-तरीके रीति-रिवाज और परंपराओं का पालन करते हैं. इतनी सब भिन्नताओं के होते हुए भी उनमें एक मूलभूत एकता है और वह यह है कि वह हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई बाद में है पहले वह भारतीय हैं. कोई भी संप्रदाय अथवा धर्म में मानव मानव को लड़ाने की बात नहीं करता सभी संप्रदाय भाईचारे प्रेम एवं शांति की बात करते हैं, फिर भी कुछ स्वार्थी तथा विघटनकारी तत्व दो अन्य संप्रदायों में झगडें कराते हैं. इनमें आपस में एक दूसरे के प्रति कटुता और विद्वेष पैदा करते हैं. जिससे समाज में तनाव की स्थिति बनी रहती है. उर्दू के प्रसिद्ध शायर इकबाल ने कहा था.

जब कोई संप्रदाय अथवा धर्म स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और अन्य संप्रदाय को निम्न मानने लगता है. तब उसके मन में अपने संप्रदाय के प्रति एक अहंकार की बू आने लगती है. इसी कारण वह दूसरे संप्रदाय के प्रति घृणा, विद्वेष और अहिंसा का भाव रखने लगता है. यह एक ऐसी बुराई है जो मानव सेवा के बीच अलगाव तथा तनाव पैदा करती है. सांप्रदायिकता राष्ट्रीय एकता और अखंडता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है. इससे पूरे देश का वातावरण विषाक्त हो जाता है. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने सांप्रदायिकता को ऐसा पागलपन बताया है. जो लोगों को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से अंधा बना देता है.

भारत में सांप्रदायिकता की समस्या प्रारंभ से ही धार्मिकता की अपेक्षा मुख्यतः राजनीतिक रही है. स्वार्थी राजनेता अपने अथवा अपने दल के लाभ हेतु भड़काऊ भाषण देकर आग में घी डालते हैं. परिणाम स्वरुप संप्रदाय के अंधे लोग अन्य धर्मान्धो से भीड़ जाते हैं और सारा जनजीवन दूषित कर देते हैं. वास्तव में सांप्रदायिकता की लड़ाई किसी मत, धर्म या सिद्धांत की नहीं होती अपितु वह सांप्रदायिक अंधेपन की लड़ाई होती है.

सांप्रदायिकता विश्व भर में व्याप्त बुराई है. इंग्लैंड में रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट, मुस्लिम देशों में शिया और सुन्नी, भारत में वैष्णव, शैव, सनातनी, आर्यसमाजी, दलित और सवर्ण के झगड़े उभरते रहते हैं. झगड़ों के कारण नरसंहार, धन-संपत्ति की हानि होती है.

भारत में सांप्रदायिकता का प्रारंभ में मुसलमानों का आगमन से हुआ. शासन और शक्ति पाकर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने धर्म को आधार बनाकर हिंदू जनजीवन को रौंद डाला. हिंदुओं के धार्मिक तीर्थ को तोड़ा, देवी- देवताओं को अपमानित किया. बहू बेटियों को अपवित्र किया, जान माल का हरण किया. परिणाम स्वरुप हिन्दू जाति के मन में उनके पाप कर्मों के प्रति गहरी घृणा भर गई, जो आज तक भी जीवित है. छोटी-छोटी घटना पर हिंदू- मुस्लिम संघर्ष का घटना उसी का सूचक है.

सांप्रदायिकता देश में कभी-कभी ऐसी कटुता पैदा कर देता है कि आए दिन मजहबी दंगे होते हैं. इसके द्वारा तोड़फोड़, आगजनी, नरसंहार का ऐसा तांडव होता है कि मानवता का सिर शर्म से झुक जाता है. मेरठ मुरादाबाद, रामपुर, अलीगढ़, बरेली, सहारनपुर और अन्य संवेदनशील स्थानों पर हुए दंगे इसके परिणाम हैं. धार्मिक उन्माद में वे इंसान से जानवर बनकर नारियों को विधवा मासूम बच्चों को अनाथ कर देते हैं जिन्हें बेबसी तथा लाचारी का जीवन व्यतीत करना पड़ता है. जो परिवार इसके शिकार होते हैं वे जीवनपर्यंत घटनाओं को भुला नहीं पाते हैं.

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. हमारे अपने देश में सांप्रदायिकता की समस्या कठिन अवश्य है किंतु उसका समाधान भी संभव है. सांप्रदायिकता का अंधापन अज्ञान तथा अविवेक से पैदा होता है इसलिए शिक्षा का प्रसार सर्वोत्तम उपाय हैं. शिक्षित व्यक्ति धार्मिक नेताओं के बहकावे में कम आता है. सांप्रदायिकता की समस्या को सुलझाने के लिए धर्म के ठेकेदारों को अपनी मानसिकता को बदलना होगा. यदि सभी धर्मों के अनुयाई एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करें तथा दूसरों का आदर करें उन्हें स्वीकार करे. उनके कार्यक्रमों को अपनाकर उनमें सम्मिलित हो. एक दूसरे के उत्सवों पर बधाई देकर भाईचारे का परिचय दें. एक दूसरे के धर्मों का आदर देते हुए आपस में मिल कर रहे.

सांप्रदायिकता से लड़ने का सशक्त माध्यम है साहित्य और कला. यदि कवि, लेखक, पत्रकार, साहित्यकार, व्यंगकार अपनी लेखनी के जादू से सांप्रदायिकता के विरुद्ध लड़े तथा प्रभावशाली उदाहरण प्रस्तुत करे. तो जन मन को बदला जा सकता है प्रजातंत्र में यही सच्चा और सर्वोत्तम उपाय हैं.

प्रत्येक मानव का यह अधिकार है कि वह अपनी इच्छा अनुसार धर्म का पालन करें. किसी मानव को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने धार्मिक अंधविश्वास के कारण दूसरों की उन्नति के मार्ग में बाधा बन जाए. यदि कोई सांप्रदायिकता की संकुचित भावना से प्रेरित होकर अपने धर्म का विकास तथा दूसरे धर्म का हास्य करता है तो इससे निश्चय ही राष्ट्र विश्वविधाता संपूर्ण मानवता को क्षति पहुंचेगी. अतः सांप्रदायिकता एक अभिशाप को समाप्त

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