samudra tat ka drishya
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भारत के पुराणों और प्राचीन ग्रंथों में गोवा का उल्लेख मिलता है। इसे पहले गोपराष्ट्र, गोपकपुरी, गोपकपट्टन, गोअंचल, गोवे, गोवापुरी, गोपकापाटन, गोमंत, चंद्रपुर और चंदौर नाम से जाना जाता था। परशुराम ने बाणों की वर्षा से इसे पीछे धकेल दिया था, इसी कारण इसे वाणस्थली भी कहा जाता है।
जिस स्थान का नाम पुर्तगाल के यात्रियों ने गोवा रखा, वह आज का छोटा-सा समुद्र तटीय शहर गोअ-वेल्हा है। बाद में समूचे द्वीप क्षेत्र को गोआ या गोवा कहा जाने लगा। पुर्तगालियों ने यहां ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया। गोवा लगभग 500 वर्ष तक पुर्तगालियों के अधीन रहा।
यहां की मातृ भाषा कोंकण और मराठी है। 1000 साल पहले कहा जाता है कि गोआ 'कोंकण काशी' के नाम से जाना जाता था। हालांकि पुर्तगाली लोगों ने यहां के इतिहास और मूल संस्कृति का नामोनिशान मिटाकर धर्मांतरण का ही काम किया हो, ऐसा नहीं, उन्होंने यहां की प्राकृतिक और धन संपदा को लूटकर पुर्तगाल में भेज दिया।