Samvad/Conversation Between Krishna and Sudama in Hindi/ हिन्दी
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भारतीय परंपरा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता- पिता और गुरू के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। लेकिन जब भी मित्रता की बात होती है तो लोग द्वापर युग वाली कृष्ण-सुदामा की मित्रता की किसाल देना नहीं भूलते।
कृष्ण और सुदामा की मित्रता को इतनी शोहरत क्यों मिली इसे एक प्रचलित कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है-
बेहद गरीब थे सुदामा-
भगवान कृष्ण के सहपाठी रहे सुदामा एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवा से थे। उनके सामने हालात ऐसे थे बच्चों को पेट भरना भी मुश्किल हो गया था। गरीबी से तंग आकर एक दिन सुदामा की पत्नी ने उनसे कहा कि वे खुद भूखे रह सकते हैं लेकिन बच्चों को भूखा नहीं देख सकते। ऐसे कहते -कहते उनकी आंखों में आंसू आ गए।
ऐसा देखकर सुदामा बहुत दुखी हुए और पत्नी से इसका उपाय पूछा। इस पर सुदामा की पत्नी ने कहा- आप बताते रहते हैं कि द्वारका के राजा कृष्ण आपके मित्र हैं। और द्वारका के राजा के आपके मित्र हैं तो क्यों एक बार क्यों नहीं उनके पास चले जाते? वह आपके दोस्त हैं तो आपकी हालत देखकर बिना मांगे ही कुछ न कुछ दे देंगे। इस पर सुदामा बड़ी मुश्किल से अपने सखा कृष्ण से मिलने के लिए तैयार हुए। उन्होंने अपनी पत्नी सुशीला से कहा कि किसी मित्र के यहां खाली हाथ मिलने नहीं जाते इसलिए कुछ उपहार उन्हें लेकर जाना चाहिए। लेकिन उनके घर में अन्न का एक दाना तक नहीं था। कहते हैं कि सुदामा के बहुत जिद करने पर उनकी पत्नी सुशीला ने पड़ोस चार मुट्ठी चावल मांगकर लाईं और वही कृष्ण के लिए उपहार के रूप में एक पोटली में बांध दिया।
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सुदामा को देख कृष्ण की आखों में आए आंसू
सुदामा जब द्वारका पहुंचे तो वहां का वैभव देखकर हैरान रह गए। पूरी नगरी सोने की थी। लोग बहुत ही सुखी और संपन्न थे। सुदामा किसी तरह से लोगों से पूछते हुए कृष्ण के महल तक पहुंचे और द्वार पर खड़े पहरेदारों से कहा कि वह कृष्ण से मिलना चाहते हैं। लेकिन उनकी हालत देखकर द्वारपालों ने पूछा कि क्या काम है? सुमामा- कृष्ण मेरे मित्र हैं।
द्वारपालों ने महल में जाकर भगवान कृष्ण को बताया कोई गरीब ब्राह्मण उनसे मिलने आया है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है। इस सुदामा नाम सुनते ही भगवान कृष्ण नंगे पांव सुदामा को लेने के लिए दौड़ पड़े। इस वहां मौजूद लोग हैरान रह गए कि एक राजा और एक गरीब साधू में कैसी दोस्ती हो सकती है।
भगवान कृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गए और पाठशाला के दिनों की यादें ताजा कीं। कृष्ण ने सुदामा से पूछा कि भाभी ने उनके लिए क्या भेजा है है? इस सुदामा संकोच में पड़ गए और चावल की पोटली छुपाने लगे। ऐसा देखकर कृष्ण ने उनसे चावल की पोटली छीन ली। भगवान कृष्ण सूखे चावल ही खाने लगे। सुदामा की गरीबी देखकर उनके आखों में आंसू आ गए।
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बिना मांगे ही सबकुछ दिया
सुदामा कुछ दिन द्वारिकापुरी में रहे लेकिन संकोचवश कुछ मांग नहीं सके। विदा करते वक्त कृष्ण उन्हें कुछ दूर तक छोड़ने आए और उनसे गले लगे। सुदामा जब अपने घर लौटने लगे तो सोचने लगे कि पत्नी पूछेगी कि क्या लाए हो तो वह क्या जवाब देंगे?
सुदामा घर पहुंचे तो वहां उन्हें अपनी झोपड़ी नजर ही नहीं आई। वह अपनी झोपड़ी ढूंढ़ रहे थे तभी एक सुंदर घर से उनकी पत्नी बाहर आईं। उन्होंने सुंदर कपड़े पहने थे। सुशीला ने सुदामा से कहा, देखा कृष्ण का प्रताप, हमारी गरीबी दूर कर कृष्ण ने हमारे सारे दुःख हर लिए। सुदामा को कृष्ण का प्रेम याद आया। उनकी आंखों में खूशी के आंसू आ गए।
दोस्तों, कृष्ण और सुदामा का प्रेम यानी सच्ची मित्रता यही थी। कहा जाता है कि कृष्ण ने सुदामा को अपने से भी ज्यादा धनवान बना दिया था। दोस्ती के इसी नेक इरादे की लोग आज भी मिसाल देते हैं।
कृष्ण-सुदामा की दोस्ती लोगों को इतनी प्रभावित करती है कि बहुत से लोग तो कॉलरट्यून में भी - 'अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो...' की धुन लगा रखते हैं।