samvad lekhan ÷ bahurashtriya compniyo ke karan arthavyavastha par padne wale dushprabhavo ko lekar do vyaktiyo ke beech me samvad
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1991 से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ज्यादा योगदान नहीं था। सुधार से पहले की अवधि में सार्वजनिक उद्यम भारतीय अर्थव्यवस्था पर हावी थे। 1991 से 1996 के बीच पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा उदारीकरण और निजीकरण की नीति को अपनाने के साथ ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से विकास के लिए महत्वपूर्ण माना गया था।
1991 से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ज्यादा योगदान नहीं था। सुधार से पहले की अवधि में सार्वजनिक उद्यम भारतीय अर्थव्यवस्था पर हावी थे। 1991 से 1996 के बीच पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा उदारीकरण और निजीकरण की नीति को अपनाने के साथ ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से विकास के लिए महत्वपूर्ण माना गया था। सरकार से अनुमति मिलने के बाद कई विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने देश में बिजनेस शुरू कर दिया था। दुनियाभर में बहुराष्ट्रीय कंपनियां बहुत शक्तिशाली आर्थिक ताकत के रूप में उभरी हैं। आमतौर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां कई देशों में विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करती हैं, उन्हें बाजारों में बेचती हैं, दुनिया के कई लोगों को प्रबंधन में रखती हैं और इसमें कई शेयरधारक भी होते हैं। हालांकि, एमएनस कंपनियां कई लोगों को नौकरियों पर भी रखती हैं, लेकिन इनके कारण कई लोगों की नौकरियां भी गई हैं।
बहुराष्ट्रीय कंपनियां जो केवल मुनाफे से प्रेरित हैं, रोजगार के अवसरों को नष्ट ही करती हैं। यह देखा गया है कि एमएनसी चाहे भारत में हो या कहीं और, नौकरी के अवसरों को बढ़ावा देने या रोजगार पैदा करने के लिए नहीं, बल्कि केवल अपने लाभ को अधिकतम करने पर ज्यादा जोर देती है। भारतीय संदर्भ में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निम्नलिखित प्रभाव हैं :
-बेरोजगारी का कारण : बहुराष्ट्रीय कंपनियां रोजगार जरूर पैदा करती हैं, लेकिन सीमित आधार पर। वहीं, भारतीय संदर्भ में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बेरोजगारी समस्या को बढ़ाया ही है। विभिन्न सैद्धांतिक कारणों के अनुसार, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को गैर जिम्मेदार शोषक के रूप में जाना जाता है खुद के देश से गरीब देशों में नौकरियां को निर्यात करते हैं, जहां असंगठित श्रम का शोषण कर सकें।
-लघु उद्योगों पर नकारात्मक असर डालती हैं बहुराष्ट्रीय कंपनियां : अपनी विशाल पूंजी, विस्तृत व्यापार नेटवर्क और आकर्षक विज्ञापन तकनीकों के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियां लघु उद्योगों के लिए एक कठिन चुनौती पैदा करती हैं। नतीजन, लघु उद्योगों को खुद को बनाए रखने में काफी कठिनायों का सामना करना पड़ता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां जो लघु उद्योगों की आर्थिक स्थिति से खेलती हैं, अंतत: उन्हें नष्ट कर देती हैं। ऐसा कहा जाता है कि ऐसी कंपनियां अप्रत्यक्ष रूप से तीन लाख से अधिक लघु उद्योगों के बंद होने के लिए जिम्मेदार हैं। 200 साल पहले ईस्ट इंडिया कंपनी नाम की एक ही बहुराष्ट्रीय कंपनी थी, लेकिन आज 4 हजार से अधिक कंपनियां हैं जो देश के स्वदेशी उद्योगों को कमजोर करने में लगी हैं।
-उपभोक्तावाद और सांस्कृतिक आक्रमण : इन कंपनियों ने लोगों को नई चीजों के लिए दीवाना बना दिया है। ये कंपनियां शीतल पेय, शैंपू, हेयर ऑयल, लिपस्टिक आदि चीजें बनाती हैं और आकर्षक विज्ञापनों के जरिए लोगों को इन्हें खरीदने के लिए विवश करती हैं। इस प्रवृत्ति ने अवांछित उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, पश्चिमी शैलियों, मूल्यों आदि को शुरू कर इन कंपनियों ने राष्ट्रीय संस्कृतियों के खिलाफ एक प्रकार का सांस्कृति हमला शुरू किया है।