samvad lekhan Sasan aur Unki gatividhiya
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बातचीत के सम्बन्ध में सोचता हूँ तो कुछ निश्चित तस्वीरें ही मन में उभरती हैं। एक, जिसमें शिक्षक बोल रहा है और बच्चे उसे चुपचाप सुन रहे हैं। दो, कुछ बच्चे शिक्षक को बड़े ध्यान से सुन रहे हैं, कुछ शिक्षक को न सुनकर आपस में बातचीत करने में लगे हैं। तीन, या फिर शिक्षक कक्षा में नहीं है और बच्चे आपस में गप्पें मारने में लगेे हैं। मगर मैंने यह कभी नहीं देखा कि एक शिक्षक बच्चों के साथ सामान्य बातचीत कर रहा हो। ये सब अवलोकन सामान्य सरकारी ग्रामीण स्कूलों के मेरे अनुभवों पर आधारित हैं। परन्तु कक्षा में होने वाली बातचीत का महत्व चाहे वह स्कूल ग्रामीण हो या शहरी, सभी जगह समान है।
कृष्ण कुमार का कहना है, “बातचीत के प्रति उपेक्षा की वजह से हम शिक्षा में बातचीत के उपयोग की अवहेलना करते आ रहे हैं। यह स्थिति सभी स्तरों पर है पर प्रारम्भिक स्तर पर यह सबसे स्पष्ट है। नर्सरी व प्रायमरी स्कूल के लिए बातचीत करना सीखने और सीखी हुई चीज़ों को सुदृढ़ बनाने का एक बुनियादी माध्यम है। ऐसे अध्यापक जो बच्चों को बातचीत नहीं करने देते, वे पहले ही ऐसा मूल्यवान साधन बेकार जाने दे रहे हैं जिसके लिए
कृष्ण कुमार का कहना है, “बातचीत के प्रति उपेक्षा की वजह से हम शिक्षा में बातचीत के उपयोग की अवहेलना करते आ रहे हैं। यह स्थिति सभी स्तरों पर है पर प्रारम्भिक स्तर पर यह सबसे स्पष्ट है। नर्सरी व प्रायमरी स्कूल के लिए बातचीत करना सीखने और सीखी हुई चीज़ों को सुदृढ़ बनाने का एक बुनियादी माध्यम है। ऐसे अध्यापक जो बच्चों को बातचीत नहीं करने देते, वे पहले ही ऐसा मूल्यवान साधन बेकार जाने दे रहे हैं जिसके लिए
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