samvad lekhen on jal ki jung
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रमेश - अरे सुरेश तुम इतना किस बारे में सोच रहे हो ?
सुरेश - कुछ नहीं रमेश , आज भैया ने जल के बारे में बहुत कुछ बताया , जल की इतनी सारी उपयोगिता बताई तो उसके बारे में ही सोच रहा था।
रमेश - इतना भी क्या सोच रहे हो भाई ?
सुरेश - क्या तुमने आज कल अख़बार में नहीं पढ़ा कि किस प्रकार देश के कई इलाकों में इस पानी को लेकर आपस में कितना संघर्ष होता है। जो पानी हम लोगों को सहज में उपलब्ध हो जाता है उस पानी के लिए कितने ही लोगों को कई मील रोज चलना पड़ता है।
रमेश - हाँ सुरेश , बात तो तुम्हारी एकदम सच है।
सुरेश - यही नहीं रमेश , उन्हें वहाँ पानी नहीं मिलता और हम लोग यहाँ पर व्यर्थ में ही कितना जल बर्बाद कर देते हैं। कितना पानी बिना किसी काम के बहा देते है।
रमेश - हाँ सुरेश ,ये सब सुनने के बाद मैंने तो ये निश्चय कर लिया है कि मैं कभी जल को बर्बाद नहीं करूँगा।
सुरेश - बहुत ही बढ़िया विचार है रमेश तुम्हारा परन्तु मैं कुछ और भी सोच रहा था।
रमेश - क्या सोच रहे हो ?
सुरेश - रमेश अगर हम जल की उपयोगिता सबको बताएं और जल संरक्षण के लिए बोले और लोगो को इसकी उपयोगिता बताएं तो कैसा रहेगा।
रमेश - वाह! क्या बढ़िया विचार है !
सुरेश - तो फिर पक्का कल से इसकी तैयारी शुरू।
रमेश - बिलकुल - बिलकुल, अब इसकी तैयारी अच्छे से करेंगे।