Hindi, asked by gaurisharmadli, 1 month ago

सन 1766 तथा सन् 1770 में अकाल की विभीषिका किस रूप में फैली?
जनता की कौन सी चुनौतियों मूर्खतापूर्ण थी तथा उसका क्या परिणाम हुआ?

Answers

Answered by lavairis504qjio
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Explanation:

1943 में बंगाल में आये अकाल को 76 साल हो गए हैं. ये आपदा इतनी भयंकर थी कि 30 से 40 लाख लोग भूखे मर गए थे. ये अकाल प्रकृति जनित न होकर प्रशासन जनित था. बंगाल के लगभग तमाम जिले अकाल की चपेट में आये. अकाल का सबसे अधिक प्रभाव ग़रीब जनता और विशेषत: किसानों पर पड़ा था.

कलकत्ता शहर की आवासीय जनता अपेक्षाकृत कम प्रभावित हुई. पर वहां भी पलायन कर आये ग़रीब भूखे मरे. बंगाल सरकार ने अपनी पूरी ताक़त कलकत्ता संभालने में लगा दी. राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारियों को धन आपूर्ति में सबसे ऊपर रखा गया. कलकत्ता उद्योग संगठनों के प्रभाव की वजह से कामगारों को अनाज की किल्लत न होने दी गयी. दूसरा, कलकत्ता में मीडिया की मौजूदगी थी. पर जिस मीडिया ने कलकत्ता को बचाया, उसी ने बाकी जगहों पर आखें मूंद लीं!

अकाल के कारणों की जांच के लिए बने आयोग ने खाद्यान्न की किल्लत को सबसे अहम कारण बताया था. आयोग की रिपोर्ट में लिखा गया कि 1942 में तूफ़ान, भारी बारिश और फसलों में कीट लगने की वजह से पैदावार कम हुई. दूसरा, द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने रंगून को अपने कब्ज़े में ले लिया था और वहां से धान का आयात रुक गया. इससे, खपत और आपूर्ति में संतुलन तो बिगड़ा ही, साथ-साथ धान बिक्री के दाम बढ़ गए. पर 1981 में अमर्त्य सेन के लेख ‘पावर्टी एंड फैमिन’(ग़रीबी और अकाल) में इस कारणों को खारिज कर दिया.

अमर्त्य सेन का ग़रीबी और अकाल पर लेख का सार

सेन ने 1941, 1942 और 1943(अकाल वाला साल) का अध्यनन किया. वो लिखते हैं कि 1941 की तुलना में 1943 में 13% ज़्यादा धान की पैदावार हुई. इसके अलावा, 1943 में गेंहू और आटे का आयत भी लगभग 33% ज़्यादा किया गया. प्रति व्यक्ति आपूर्ति 11% ज़्यादा हुई. इसी प्रकार रिपोर्ट के इन दावों में भी कोई दम नहीं था कि 1943 के शुरूआती 2 तिमाही में आपूर्ति कम थी और लोग ज़्यादा मरे. आंकड़ें बताते हैं कि मरने वालों की तादाद 3 और 4 तिमाही में सबसे ज़्यादा थी और इसी दौरान आपूर्ति भी सबसे ज़्यादा की गयी थी. आख़िरी बात, 1942 के अंत में बचे हुए धान या गेंहू के स्टॉक का 1943 में कैरी फॉरवर्ड भी ठीक-ठाक मात्रा में हुआ था. तो कुल मिलाकर बात ये हुई कि जब आपूर्ति और पैदावार पिछले साल की तुलना में ज़्यादा थे, फिर क्यों लोग भूख से मर गए? सेन के मुताबिक़ ये ग़लत सरकारी नीतियों और वितरण के कुप्रबंधन की वजह से हुआ.

अकाल के वास्तविक कारण

देखा जाए तो ये महज़ सरकार की लापरवाही की वजह से हुआ क्यूंकि वो हालात का सही आंकलन नहीं कर पाई और साथ-साथ वितरण की व्यवस्था सुचारू रूप से काम नहीं कर सकी. 1943 के शुरुआती महीनों में जब हज़ारों लोग मर रहे थे, सरकार ने किसी भी प्रकार के राहत कार्यक्रम शुरू नहीं किये. बल्कि, अकाल जैसी किसी भी स्तिथि को मानने से ही इंकार करते हुए, सरकार ने अंतरराज्यीय अनाज के व्यापार पर रोक लगा दी परिणामस्वरुप बंगाल में कालाबाज़ारी की मार्फ़त ऊंचे दामों पर अनाज आया. चर्चिल के आदेशानुसार जनवरी 1943 में लार्ड वावेल ने स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिए कि बंगाल सीलोन (श्रीलंका) अनाज भेजने के लिए और पैदावार करे.

दूसरा विश्व युद्ध भी एक बड़ा कारण बना. उसकी वजह से मंहगाई बढ़ी. वहीं ग्रामीणों की आमदनी मंहगाई की तुलना में नहीं बढ़ी. सेन लिखते हैं कि 1943 की तीसरी और चौथी तिमाही में ग़रीबों की अनाज ख़रीदने की क्षमता के बनिस्पत दाम तीन गुना बढ़ गए थे. ब्रिटिश फ़ौज का भारी जत्था कलकत्ता में डेरा डाले हुए बैठा था इससे कलकत्ता में अनाज वितरण व्यवस्था बिगड़ गई. जब कलकत्ता वासियों और फ़ौज के लिए सरकारी आपूर्ति कम पड़ने लगी तो ग्रामीण इलाकों से ऊंची कीमतों पर धान खरीदकर शहर लाया गया, इससे गांवों में औ

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