Hindi, asked by 578367, 14 days ago

सन्1857 के व्यापक सशस्त्र विद्रोि ने भारत में ब्रिहटश शासन की िड़ों को हिला हदया |

भारत में ब्रिहटश शासन ने जिस दमन न तत को आरींभ ककया उसके विरुद्ध विद्रोि शुरू िो

गया था | माचच 1857 में बैरकपुर में अींग्रेिों के विरुद्ध बगाित करने पर मींगल पाींडे को 8

अप्रैल 1857 को फााँस दे दी गई | 10 मई 1857 को मेरठ में भारत य सैतनकों ने ब्रिहटश

आींदोलन के विरुद्ध आन्दोलन ककया | और स धे हदल्ली की ओर कूाँच कर गए | हदल्ली मे

तैनात सैतनको के साथ ममलकर 11 मई को उन्िोने हदल्ली पर कब्िा कर मलया और अींततम

मुगल शासक बिादरु शाि िफर को भारत का शासक घोवषत कर हदया |


सन्1857 के सशस्त्र विद्रोि का भारत में ब्रिहटश शासन पर क्या असर पड़ा ?

(क)ब्रिहटश शासन मिबूत िो गया |

(ख)ब्रिहटश शासन समाप्त िो गया|

(ग) ब्रिहटश शासन कमिोर पड़ गया |

(घ) ब्रिहटश शासन यथाित रिा |​

Answers

Answered by ambujtripathi43
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Answer:

उत्तर :

उत्तर की रूपरेखा:

1857 के विद्रोह के संबंध में विद्वानों के विचार।

1857 के विद्रोह का कारण।

मूल्यांकन।

निष्कर्ष।

1857 के संघर्ष को लेकर इतिहासकारों के विचार एक समान नहीं हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि 4 महीनों का यह उभार किसान विद्रोह था तो कुछ इसे सैन्य विद्रोह मानते हैं। वी.डी. सावरकर की पुस्तक ‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस’ में इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना। 20वीं सदी के शुरुआती दौर के राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने इसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष बताया जो कि स्वतंत्रता की प्रथम लड़ाई में परिवर्तित हो गया।

1857 का विद्रोह ब्रिटिश विस्तारवादी, शोषक एवं कराधान नीतियों, अंग्रेजों द्वारा सामाजिक प्रथाओं में हस्तक्षेप तथा अन्य प्रशासनिक अत्याचारों का सम्मिलित प्रभाव था। लॉर्ड डलहौजी की विलय की नीति तथा वेलेजली की सहायक संधि से भारत की जनता में बहुत असंतोष था। इन कारणों ने स्थानीय शासकों, सिपाहियों, ज़मींदारों, किसानों, कारीगरों, व्यापारियों और धार्मिक नेताओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।

सेना में एनफील्ड राइफल का आरंभ विद्रोह का तात्कालिक कारण था, जिसके कारतूस कथित रूप से गौमांस एवं सूअर की चर्बी से बने थे और इन्हें चलाने के लिये मुँह से खोलना पड़ता था। इससे हिंदू एवं मुस्लिम दोनों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँची और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया।

सिपाहियों ने सर्वप्रथम 10 मई, 1857 को विद्रोह किया। उसके बाद सिपाहियों ने दिल्ली के लिये कूच किया एवं बहादुर शाहजफर को दिल्ली का बादशाह घोषित कर दिया। तत्पश्चात यह विद्रोह अवध, बंगाल, रुहेलखंड, दोआब, बुंदेलखंड, मध्य बिहार एवं पूर्वी पंजाब तक फैल गया। देशी शासकों ने भी कुछ क्षेत्रों में विद्रोह का नेतृत्व किया, जैसे- कानपुर में नाना साहब, झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि।

विद्रोह का मूल्यांकन:

यह अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम प्रतिक्रिया नहीं थी, क्योंकि भारत के पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी भागों में क्योंकि भारत के पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी भागों में जनता ने पहले भी विद्रोह किया था और इसका दमन कर दिया गया था। कुल क्षेत्र का लगभग एक-चौथाई एवं कुल आबादी के दसवें भाग से अधिक जनसंख्या इस विद्रोह से प्रभावित नहीं हुई क्योंकि इसका प्रादेशिक प्रसार सीमित था और मुख्य रूप से यह उत्तर भारत तक ही फैला था। इसलिये इसका स्वरूप अखिल भारतीय नहीं था।

विद्रोह के नेता क्षेत्रीय भावना और व्यक्तिगत हितों से निर्देशित थे। उदाहरण के लिये रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोह किया क्योंकि वे अपने दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थीं। इसके अतिरिक्त विद्रोह में उचित समन्वय और केंद्रीय नेतृत्व का अभाव था।

बड़े ज़मींदार और अवध के तालुकदार इस विद्रोह के विरुद्ध थे। साहूकारों और व्यापारियों ने अनुभव किया कि उनके आर्थिक हित ब्रिटिश संरक्षण के अंतर्गत बेहतर रूप से संरक्षित हैं। आधुनिक शिक्षा प्राप्त भारतीयों का विश्वास था कि ब्रिटिश, भारत का आधुनिकीकरण करेंगे और उन्होंने विद्रोह को प्रतिगामी प्रतिक्रिया समझा।

सिख और गोरखा सैनिकों ने विद्रोह का दमन कर दिया, जिसने भारतीय सैनिकों के बीच एकता के अभाव को प्रदर्शित किया।

इसलिये आर.सी. मजूमदार ने यह निष्कर्ष निकाला कि 1857 का विद्रोह ‘न तो प्रथम, न राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था।’ यह ब्रिटिश प्राधिकारियों के शोषक शासन के विरुद्ध आम जनता का सहज विद्रोह था। इसे सैनिकों का विद्रोह माना गया है जो धर्म हेतु संघर्ष के रूप में आरंभ हुआ। विद्रोहियों की सीमाओं एवं कमजोरियों के बाद भी उनके प्रयास राष्ट्रीय आंदोलन के लिये प्रेरणा के स्रोत बने रहे।

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