सन 1919 की अमृतसर के बैसाखी रोंगटे खड़े कर देने वाली कैसी थी short answer urgently its needed
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जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास से जुड़ी हुई एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जो कि साल 1919 में घटी थी. इस हत्याकांड की दुनिया भर में निंदा की गई थी. हमारे देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों को रोकने के लिए इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था. लेकिन इस हत्याकांड के बाद हमारे देश के क्रांतिकारियों के हौसले कम होने की जगह और मजबूत हो गए थे. आखिर ऐसा क्या हुआ था, साल 1919 में जिसके कारण, जलियांवाला बाग में मौजूद बेकसूर लोगों की जान ले ली गई थी,
9 अप्रैल को सरकार ने पंजाब से ताल्लुक रखने वाले दो नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था. इन नेताओं के नाम डॉ सैफुद्दीन कच्छू और डॉ. सत्यपाल था. इन दोनों नेताओं को गिरफ्तार करने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने इन्हें अमृतसर से धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिया गया था. जहां पर इन्हें नजरबंद कर दिया गया था.
अमृतसर के ये दोनों नेता यहां की जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे और अपने नेता की गिरफ्तारी से परेशान होकर, यहां के लोग 10 अप्रैल को इनकी रिहाई करवाने के मकसद से डिप्टी कमेटीर, मिल्स इरविंग से मुलाकात करना चाहते थे. लेकिन डिप्टी कमेटीर ने इन लोगों से मिलने से इंकार कर दिया था. जिसके बाद इन गुस्साए लोगों ने रेलवे स्टेशन, तार विभाग सहित कई सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया. तार विभाग में आग लगाने से सरकारी कामकाज को काफी नुकसान पहुंचा था, क्योंकि इसी के माध्यम से उस वक्त अफसरों के बीच संचार हो पाता था. इस हिंसा के कारण तीन अंग्रेजों की हत्या भी हो गई थी. इन हत्याओं से सरकार काफी खफा थी.