सन्तोष एव कस्य परं निधानम्
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रुक्षाशनेन मुनयः क्षपयन्ति कालम् सन्तोष एव पुरुषस्य परं निधानम् ॥ सर्प पवन पीकर भी दुर्बल नहि है, जंगली हाथी सूखा घास खाकर भी बलवान बनते हैं, मुनि रुखा खुराक खाकर जिंदगी निकालते हैं । संतोष हि मनुष्य का परम् खजाना है । तुष्टो हि राजा यदि सेवकेभ्यो भाग्यात् परं नैव ददाति किञ्चित् ।
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रुक्षाशनेन मुनयः क्षपयन्ति कालम् सन्तोष एव पुरुषस्य परं निधानम् ॥ सर्प पवन पीकर भी दुर्बल नहि है, जंगली हाथी सूखा घास खाकर भी बलवान बनते हैं, मुनि रुखा खुराक खाकर जिंदगी निकालते हैं । संतोष हि मनुष्य का परम् खजाना है । तुष्टो हि राजा यदि सेवकेभ्यो भाग्यात् परं नैव ददाति किञ्चित् ।
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