Hindi, asked by Mannapatil, 5 months ago

सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिए -
(अ) मैया मैं नाही............ शिव विरंचि बौरायो।।​

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Answered by rs814029
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Jayeshsalvi 11111111111

Answered by mahawirsingh15
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सन्दर्भ :

प्रस्तुत पद ‘वात्सल्य और स्नेह’ से सूरदास द्वारा रचित ‘सूर के बालकृष्ण’ नामक शीर्षक से उद्धृत किया गया है।

सन्दर्भ :

इसमें बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से अपने प्रति की गई दही खाने की शिकायत को नकारते हुए बड़े ही बुद्धिकौशल से बाल सुलभ उत्तर देते हैं।

व्याख्या :

श्रीकृष्ण माता यशोदा से कहते हैं कि, हे माता! मैंने दही नहीं खाया है। मुझे याद आ रहा है कि इन सभी सखाओं ने मिलकर मेरे मुख पर दही लपेट दिया था। तू जानती है कि इतने ऊँचे टँगे हुए छींके पर दही का बर्तन रखा हुआ है। तू देख सकती है कि मेरे छोटे-छोटे हाथ हैं। इन छोटे हाथों से मैं कैसे उस दही के बर्तन को प्राप्त कर सकता हूँ। फिर नन्दकुमार बालकृष्ण ने दोने को पीठ के पीछे छिपाते हुए और मुख पर लगे हुए दही को पोंछते हुए उपर्युक्त बातें कहीं। यहाँ उनकी बाल सुलभ चतुरता का प्रदर्शन किया गया है। उन्हें भान है कि मुख पर लगे हुए दही से और हाथ में लगे दोने से उनकी चोरी पकड़ी जाएगी, अतः मुख को साफ कर लिया और दोने को पीठ के पीछे छुपा लिया।

यशोदा जी सब समझ गईं, लेकिन पीटने वाली लकड़ी को फेंक कर मुस्कराने लगी और मनमोहन बालकृष्ण को अपने गले से लगा लिया। श्रीकृष्ण के बाल विनोद के आनन्द ने माता यशोदा के मन को मोहित कर लिया। यहाँ श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति का प्रताप दर्शाया गया है। सूरदास कहते हैं कि यशोदा जी और बालकृष्ण के सख को देखकर शिव और ब्रह्मा भी विवेक रहित होकर मोहित हो गए। अर्थात् श्रीकृष्ण यशोदा जी को अपनी बाल लीलाओं का जो सुख दे रहे हैं उससे किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है और वह भ्रमित हो सकता है। निरंजन निराकार परब्रह्म साकार रूप में आकर यशोदा जी के आँगन में उनके प्रमोद के लिए जो क्रीड़ाएँ कर रहे हैं, ऐसा सुख शिव-विरंचि को भी दुर्लभ है।

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