सन्धि विच्छेद करे चासीत्
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संधि-विच्छेद संग्रह
हिंदीसमासप्रत्यय
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दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं। इस मिलावट को समझकर वर्णों को अलग करते हुए पदों को अलग-अलग कर देना संधि-विच्छेद है। हिंदी भाषा में संधि द्वारा संयुक्त शब्द लिखने का सामान्य चलन नहीं है। पर संस्कृत में इसके बिना काम नहीं चलता है। संस्कृत के तत्सम शब्द ग्रहण कर लेने के कारण संस्कृत व्याकरण के संधि के नियमों को हिंदी व्याकरण में भी ग्रहण कर लिया गया है। शब्द रचना में संधियाँ उसी प्रकार सहायक है जैसे उपसर्ग, प्रत्यय, समास आदि।
यहाँ वर्णक्रम से संधि तथा उसके विच्छेद संग्रहित किए गए हैं। साथ ही संधि का प्रकार भी निर्देशित है।
अ, आ
अंतःकरण = अंतः + करण (विसर्ग-संधि)
अजंत = अच् + अंत (व्यंजन संधि)
अंनाश = अच् + नाश (व्यंजन संधि)
अधोगति = अधः + गति (विसर्ग-संधि)
अनुच्छेद = अनु + छेद (व्यंजन संधि)
अन्वय = अनु + अय (यण स्वर संधि)
अन्वेषण = अनु + एषण (यण स्वर संधि)
अब्ज = अप् + ज (व्यंजन संधि)
अभिषेक = अभि + सेक (व्यंजन संधि)
अम्मय = अप् + मय (व्यंजन संधि)
आच्छादन = आ + छादन (व्यंजन संधि)
अत्रैव = अत्र + एव (वृद्दि संधि)
इत्यादि = इति + आदि (यण स्वर संधि)
अहीर = अहि + ईर (दीर्घ सन्धि)
उ, ऊ
उच्चारण = उत् + चारण (व्यंजन संधि)
उच्छिष्ट = उत् + शिष्ट (व्यंजन संधि)
उज्झटिका = उत् + झटिका (व्यंजन संधि)
उड्डयन = उत् + डयन (व्यंजन संधि)
उद्धरण = उत् + हरण (व्यंजन संधि)
उद्धार = उत् + हार (व्यंजन संधि)
उन्नयन = उत् + नयन (व्यंजन संधि)
उल्लास = उत् + लास (व्यंजन संधि
उल्लेख = उत् + लेख (व्यंजन संधि)
ए, ऐ
एकैक = एक + एक (वृद्धि स्वर संधि)
ओ, औ, अं, अः
क, ख
किंकर = किम् + कर (व्यंजन संधि)
किंचित = किम् + चित (व्यंजन संधि)
ग, घ, ङ
गायक = गै + अक (अयादि स्वर संधि)
गिरीश = गिरि + ईश (दीर्घ स्वर सन्धि)
च, छ
चतुष्पाद = चतुः + पाद (विसर्ग-संधि)
ज, झ, ञ
जगदीश = जगत् + ईश (व्यंजन संधि)
जलोर्मि = जल + ऊर्मि (गुण स्वर सन्धि)
ट, ठ
ड, ढ, ण
त, थ
तट्टीका = तत् + टीका (व्यंजन संधि)
तद्धित = तत् + हित (व्यंजन संधि)
तद्रूप = तत् + रूप (व्यंजन संधि)
द, ध, न
तेनादिष्ट= तेन+अदिष्ट (दीर्घ संधि)
दिग्गज = दिक् + गज (व्यंजन संधि)
दुश्शासन = दुः + शासन (विसर्ग-संधि)
दुस्साहस = दुः + साहस (विसर्ग-संधि)
देवर्षि = देव + ऋषि (गुण स्वर सन्धि)
देव्यागमन = देवी + आगमन (यण स्वर संधि)
धर्मार्थ = धर्म + अर्थ (दीर्घ स्वर सन्धि)
नदीश = नदी + ईश (दीर्घ स्वर सन्धि)
नद्यर्पण = नदी + अर्पण (यण स्वर संधि)
नमस्ते = नमः + ते (विसर्ग-संधि)
नयन = ने + अन (अयादि स्वर संधि)
नरेंद्र = नर + इंद्र (गुण स्वर सन्धि)
नरेश = नर + ईश (गुण स्वर सन्धि)
नारींदु = नारी + इंदु (दीर्घ स्वर सन्धि)
नाविक = नौ + इक (अयादि स्वर संधि)
निराशा = निः + आशा (विसर्ग-संधि)
निराहार = निः + आहार (विसर्ग-संधि)
निरोग = निः + रोग (विसर्ग-संधि)
निर्धन = निः + धन (विसर्ग-संधि)
निश्चल = निः + चल (विसर्ग-संधि)
निश्छल = निः + छल (विसर्ग-संधि)
निषिद्ध = नि + सिद्ध (व्यंजन संधि)
निष्कलंक = निः + कलंक (विसर्ग-संधि)
निष्फल = निः + फल (विसर्ग-संधि)
निस्संतान = निः + संतान (विसर्ग-संधि)
नीरस = निः + रस (विसर्ग-संधि)
प, फ
संधि)
संयोग = सम् + योग (व्यंजन संधि)
संरक्षण = सम् + रक्षण (व्यंजन संधि)
संलग्न = सम् + लग्न (व्यंजन संधि)
संवाद = सम् + वाद (व्यंजन संधि)
संविधान = सम् + विधान (व्यंजन संधि)
संशय = सम् + शय (व्यंजन संधि)
संसार = सम् + सार (व्यंजन संधि)
सच्छास्त्र = सत् + शास्त्र (व्यंजन संधि)
सज्जन = सत् + जन (व्यंजन संधि)
सदैव = सदा + एव (वृद्धि स्वर संधि)
सद्धर्म = सत् + धर्म (व्यंजन संधि)
सद्भावना = सत् + भावना (व्यंजन संधि)
सम्मति = सम् + मति (व्यंजन संधि)
सम्मान = सम् + मान (व्यंजन संधि)
सिंधूर्मि = सिधु + ऊर्मि (दीर्घ स्वर सन्धि)
स्वच्छंद = स्व + छंद (व्यंजन संधि)
Explanation:
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