Sanchari bhav kise kahte hai
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Explanation:
संचारी भाव/व्यभिचारी भाव - संचारी का अर्थ है- साथ साथ संचरण करने वाला अर्थात् साथ-साथ चलने वाला। संचारी भाव किसी न किसी स्थायी भाव के साथ प्रकट होते हैं। ये क्षणिक,अस्थायी और पराश्रित होते हैं, इनकी अपनी अलग पहचान नहीं होती ।ये किसी एक स्थायी भाव के साथ न रहकर सभी के साथ संचरण करते हैं , इसलिए इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है।
संचारी भाव किसे कहते हैं?
संचारी भाव रस का चार प्रमुख अंगों में से एक अंग है। रस के चार प्रमुख अंग होते हैं, जिन्हें स्थाई भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव कहा जाता है।
संचारी भाव से तात्पर्य रस की उत्पत्ति होने पर किसी काव्य का श्रवण करने पर मन में उत्पन्न होने वाले मानसिक क्रियाओं से होता है। संचारी भाव स्थाई भाव के कारण उत्पन्न होने वाली क्रिया होती है, जो स्थाई नहीं होती बल्कि समय समय के साथ उत्पन्न और खत्म होती रहती है, अर्थात मन में संचार करती रहती हैं।
संचारी भाव की संख्या 33 होती है, जिनके नाम इस प्रकार हैं :
हर्ष, विषाद ग्लानि, चिंता, राजा, शंका, असूया, अमर्ष, गर्व, भय, उत्सुकता, चपलता, दीनता, उग्रता, आवेश, निर्वेद, गति, मति, विबोध, वितर्क, श्रम, आलस्य, मद, मति उन्माद, अवहित्था, अपस्मार, व्याधि और मरण।
#SPJ3
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