sanchri bhav explain with example
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भाव
स्थायी भाव के साथ विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से प्राप्त चामत्कारिक आनंद-विशेष को रस कहते हैं।
(१) संचारी भाव/व्यभिचारी भाव - संचारी का अर्थ है- साथ साथ संचरण करने वाला अर्थात् साथ-साथ चलने वाला। संचारी भाव किसी न किसी स्थायी भाव के साथ प्रकट होते हैं। ये क्षणिक,अस्थायी और पराश्रित होते हैं, इनकी अपनी अलग पहचान नहीं होती ।ये किसी एक स्थायी भाव के साथ न रहकर सभी के साथ संचरण करते हैं , इसलिए इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है।
* संचारी भाव या व्यभिचारी भाव 33 होते हैं :--
१- अपस्मार(मूर्छा) १२- चपलता २३- लज्जा
२- अमर्ष(असहन) १३- चिन्ता २४- विबोध
३- अलसता १४- जड़ता २५- वितर्क
४- अवहित्था(गुप्तभाव) १५- दैन्य २६- व्याधि
५- आवेग १६- धृति २७- विषाद
६- असूया १७- निद्रा २८- शंका
७- उग्रता १८- निर्वेद(शम) २९- श्रम
८- उन्माद १९- मति ३०- संत्रास
९- औत्सुक्य २०- मद ३१- स्मृति
१०- गर्व २१- मरण ३२- स्वप्न
११- ग्लानि २२- मोह ३३- हर्ष
॥ इति - शुभम् ॥
जो भाव स्थाई भावों के साहयक रूप में आकर उनमें मिल जायें, वे संचारी भाव कहलाते हैं जो अनुकूल परिस्थितियों में घटते-बढ़ते रहते हैं। भारत मुनि के अनुसार ये पानी में उठने और आप ही आप विलीन होने वाले बुलबुलों के समान हैं। संचारी भाव की संख्या 33 मानी गयी है।
* संचारी भाव या व्यभिचारी भाव 33 होते हैं :--
1- अपस्मार(मूर्छा) 12- चपलता 23- लज्जा
2- अमर्ष(असहन) 13- चिन्ता 24- विबोध
3- अलसता 14-जड़ता 25- वितर्क
4- अवहित्था(गुप्तभाव) 15- दैन्य 26- व्याधि
5- आवेग 16- धृति 27- विषाद
6- असूया 17- निद्रा 28- शंका
7- उग्रता 18- निर्वेद(शम) 29- श्रम
8- उन्माद 19- मति 30- संत्रास
9- औत्सुक्य 20- मद 31- स्मृति
10- गर्व 21- मरण 32- स्वप्न
11- ग्लानि 22- मोह 33- हर्ष.