sandhi of
4. चलाचले
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दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं। इस मिलावट को समझकर वर्णों को अलग करते हुए पदों को अलग-अलग कर देना संधि-विच्छेद है। हिंदी भाषा में संधि द्वारा संयुक्त शब्द लिखने का सामान्य चलन नहीं है। पर संस्कृत में इसके बिना काम नहीं चलता है। संस्कृत के तत्सम शब्द ग्रहण कर लेने के कारण संस्कृत व्याकरण के संधि के नियमों को हिंदी व्याकरण में भी ग्रहण कर लिया गया है। शब्द रचना में संधियाँ उसी प्रकार सहायक है जैसे उपसर्ग, प्रत्यय, समास आदि।
यहाँ वर्णक्रम से संधि तथा उसके विच्छेद संग्रहित किए गए हैं। साथ ही संधि का प्रकार भी निर्देशित है।
अ, आ
अंतःकरण = अंतः + करण (विसर्ग-संधि)
अजंत = अच् + अंत (व्यंजन संधि)
अंनाश = अच् + नाश (व्यंजन संधि)
अधोगति = अधः + गति (विसर्ग-संधि)
अनुच्छेद = अनु + छेद (व्यंजन संधि)
अन्वय = अनु + अय (यण स्वर संधि)
अन्वेषण = अनु + एषण (यण स्वर संधि)
अब्ज = अप् + ज (व्यंजन संधि)
अभिषेक = अभि + सेक (व्यंजन संधि)
अम्मय = अप् + मय (व्यंजन संधि)
आच्छादन = आ + छादन (व्यंजन संधि)
अत्रैव = अत्र + एव (वृद्दि संधि)
इत्यादि = इति + आदि (यण स्वर संधि)
अहीर = अहि + ईर (दीर्घ सन्धि)
उ, ऊ
उच्चारण = उत् + चारण (व्यंजन संधि)
उच्छिष्ट = उत् + शिष्ट (व्यंजन संधि)
उज्झटिका = उत् + झटिका (व्यंजन संधि)
उड्डयन = उत् + डयन (व्यंजन संधि)
उद्धरण = उत् + हरण (व्यंजन संधि)
उद्धार = उत् + हार (व्यंजन संधि)
उन्नयन = उत् + नयन (व्यंजन संधि)
उल्लास = उत् + लास (व्यंजन संधि
उल्लेख = उत् + लेख (व्यंजन संधि)
ए, ऐ
एकैक = एक + एक (वृद्धि स्वर संधि)
ओ, औ, अं, अः
क, ख
किंकर = किम् + कर (व्यंजन संधि)
किंचित = किम् + चित (व्यंजन संधि)
ग, घ, ङ
गायक = गै + अक (अयादि स्वर संधि)
गिरीश = गिरि + ईश (दीर्घ स्वर सन्धि)
च, छ
चतुष्पाद = चतुः + पाद (विसर्ग-संधि)
ज, झ, ञ
जगदीश = जगत् + ईश (व्यंजन संधि)
जलोर्मि = जल + ऊर्मि (गुण स्वर सन्धि)