sang rajya ka arth kya hota hai??
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State (राज्य)- अनुच्छेद 12 के अनुसार ‘राज्य’ शब्द के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल हैं –
1. भारत सरकार एवं संसद।
2. राज्य सरकार एवं विधानमंडल।
3. सभी स्थानीय प्राधिकारी।
4. अन्य प्राधिकारी
स्थानीय प्राधिकारी –
‘स्थानीय प्राधिकारी’ को ‘साधारण निर्वाचन अधिनियम 1897’ की धारा 3 उपबंध 31 में अस्पष्ट किया गया है। इसके अनुसार स्थानीय प्राधिकारी में नगरपालिका, ग्राम पंचायत, स्थानीय निकाय, निगम आदि आते हैं।
स्थानीय प्राधिकारी में वह स्थानीय निकाय जिन्हें विधि, उपविधि, आदेश, अधिसूचना आदि के निर्माण की शक्ति होती है। इन्हें यह शक्ति किसी विधि, अधिनियम या अन्य संविधि द्वारा प्रदान किया गया है।
संविधान द्वारा ग्राम पंचायत, अधिनियम द्वारा आवास विकास आदि स्थानीय प्राधिकारी की स्थापना की गई है।
स्थानीय प्राधिकारी की शक्ति एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित होती है।
अन्य प्राधिकारी-
यह शब्द अनुच्छेद 12 के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रारंभ में उच्चतम न्यायालय ने अन्य प्राधिकारी की अति संकुचित व्याख्या की।
Case: यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास बनाम शांताबाई (1953)
मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा यह अभिनिर्धारित किया की अन्य प्राधिकारी पदावली में वह प्राधिकारी ही सम्मिलित किए जा सकते हैं जो शासकीय या संप्रभु शक्ति का प्रयोग करते हैं।
इस प्रकार से विश्वविद्यालय तथा कंपनी आदि अन्य प्राधिकारी के दायरे से बाहर हो गए।
Case: उज्मा बाई बनाम उत्तरप्रदेश राज्य (1962)
उच्चतम न्यायालय ने शांताबाई के बाद में दिए गए निर्णय को मानने से इनकार किया और कहा कि अनुच्छेद 12 का ऐसा निर्वाचन उचित नहीं है।
वर्तमान में राज्य के कल्याणकारी कार्यों के कारण कई जिम्मेदारियां State (राज्य) पर आ गई। राज्य अपने कार्यों को निम्न अंगों द्वारा संपन्न करते हैं –
(¡) अस्थाई तथा परंपरागत विभागों द्वारा।
(¡¡) स्वतंत्र निकायों द्वारा।
स्वतंत्र निकायों को दो भागों में बांटा जा सकता है —
1.सांविधिक
2.गैर सांविधिक
सांविधिक निकाय वह निकाय जो किसी विधि या अधिनियम द्वारा निर्मित होता है और असांविधिक निकाय वह निकाय जो किसी सामान्य विधि के अंतर्गत पंजीकृत हो जैसे कंपनी।
सांविधिक निकाय तथा असांविधिक निकाय दोनों को उच्चतम न्यायालय ने Article 12 के क्षेत्र के अंतर्गत माना हैं। असांविधिक निकाय के संबंध में ‘अभिकरण की उपधारणा’ का विकास किया गया।
Case: राजस्थान इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड बनाम मोहनलाल (1967)
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 12 में प्रयुक्त ‘अन्य प्राधिकारी’ शब्द में वे सभी प्राधिकारी आते हैं जो संविधान या अन्य विधायन द्वारा स्थापित किए जाते हैं जिन्हें विधि, उपविधि आदि निर्मित कराने की शक्ति होती है यह आवश्यक नहीं कि ऐसे प्राधिकारी शासकीय या प्रभुत्व संपन्न शक्ति का प्रयोग करते हैं। इस निर्वाचन के अनुसार उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश जब उच्च न्यायालय के अधिकारियों की नियुक्ति करता है तथा राष्ट्रपति जब संविधान के अनुच्छेद 359 के अंतर्गत आदेश जारी करता है अन्य प्राधिकारी शब्द के अंतर्गत आते हैं।
सुखदेव सिंह बनाम भगतराम (1975)
इसमें अभिनिर्धारित किया कि जीवन बीमा निगम, तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग तथा कारखाना वित्त निगम अनुच्छेद 12 के अंतर्गत अन्य प्राधिकारी में आते हैं।
रंभा दयाराम शेट्टी बनाम अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (1979)
इस मामले में निर्णय लिया गया कि इंटरनेशनल एयरपोर्ट अथॉरिटी एक्ट 1911 के अधीन स्थापित इंटरनेशनल एयरपोर्ट अथॉरिटी अनुच्छेद 12 में state (राज्य) शब्द के अंतर्गत आता है।
अजय हास्य बनाम खरीद मजीद (1981)
इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया की सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1898 के अधीन पंजीकृत सोसाइटी केंद्रीय सरकार का एक अभिकरण है। अनुच्छेद 12 के परिपेक्ष में ‘अभिकरण का सिद्धांत’ इसी वाद में दिया गया ऐसा माना जाता है। किसी निकाय के अभिकरण होने या ना होने की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय ने निम्न कसौटी निर्धारित की –
1. निकाय संपूर्ण पूंजी राज्य द्वारा धारित करे।
2. निकाय के खर्चे का भार राज्य वाहन करे।
3. निकाय को राज्य द्वारा एकाधिकार प्रदान किया जाना चाहिए।
4. निकाय का घड़ा तथा प्रभाव पूर्ण नियंत्रण अपने हाथों में होना चाहिए।
5. निकाय द्वारा किए जाने वाले कार्य लोक महत्व के तथा सरकार के कार्यों के निकटस्त होना चाहिए।
क्या न्यायपालिका ‘राज्य’ शब्द के अंतर्गत आती है ?
अमेरिका में न्यायपालिका state (राज्य) शब्द के अंतर्गत आती है अतः न्यायपालिका अगर मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है तो वह आदेश अवैध घोषित किया जा सकता है।
भारत में न्यायपालिका को अनुच्छेद 12 के अंतर्गत अभिव्यक्त रूप से नहीं रखा गया है। इस संबंध में कुछ वादों में प्रश्न उठा जिसे उच्चतम न्यायालय ने निम्न प्रकार अभि निर्धारित किया है –
Case: नरेश बनाम महाराष्ट्र राज्य (1967)
इस मामले में कहा गया कि यदि यह मान भी लिया जाए कि राज्य के अंतर्गत न्यायपालिका आती है तो उसके आदेशों के विरुद्ध अनुच्छेद 32 में रिट जारी नहीं की जा सकती है। क्योंकि ऐसे आदेशों से नागरिकों के मूल अधिकारों का अतिक्रमण होता है।
Case: ए आर अंतुले बनाम आर एस नायक
इस मामले में उच्चतम न्यायालय के साथ न्यायाधीशों की संविधानिक पीठ ने अभि निर्धारित किया कि न्यायालय ऐसे आदेश या निर्देश नहीं दे सकता जो मूल अधिकारों का उल्लंघन करें। इसका तात्पर्य है कि अनुच्छेद 12 के अधीन राज्य शब्द में न्यायपालिका आ सकती है किंतु जब तक नरेश बनाम महाराष्ट्र का निर्णय उलट नहीं जाता तब तक स्थिति पूर्ववत रहेगी।
Case: रूपा अशोक हुडा बनाम अशोक हुडा (2002)
इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने मत व्यक्त किया कि न्यायिक निर्णय के संबंध में न्यायपालिका अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य के पदावली में नहीं आती है लेकिन प्रशासनिक कार्यों के संबंध में इसे ‘अन्य प्राधिकारी’ की पदावली में सम्मिलित किया जा सकता है।
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