sangarsh hi jeewan hai par anuched likhiye
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संघर्ष और ज्ञान के मेल से एक क्षमता को विकसित किया जा सकता है। परंतु संघर्ष अज्ञानता के साथ जुड़ता है तो वह विनाश को बुलावा देता है।‘‘
हमें जीवन में संघर्षो का स्वागत करना चाहिए। बिना संघर्ष किए जीवन के लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सकते। संघर्ष करने वालो की कभी हार नहीं होती। संघर्ष से व्यक्ति का व्यक्तित्व निखरता है। ऐसे व्यक्ति सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति होते है जो अपने आसपास के वातावरण से ही उस सकारात्मकता को ग्रहण करते है। हमें भी में सभी पहलुओ से सकारात्मकता ग्रहण करनी चाहिए, नकारात्मक विचारों को दूर रखना चाहिए। हमें अपना दृष्टिकोण बदलना चाहिए और सकारात्मकता विकसित करनी चाहिए।
जो व्यक्ति संघर्ष का स्वागत करते है वे ही महान बनते है। बिना संघर्ष के कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकता। आज जो भी व्यक्ति महान बने है, प्रसिद्ध हुए है वे किसी न किसी साधारण परिवार से जुड़े हुए है। उनके पिता कोई महान पुरूष नहीं थे।
लगभग 2200 वर्ष पूर्व सम्राट चन्द्रगुप्त ने कश्मीर से बह्मगिरी (दक्कन का पठार) तक व गंधार से असम तक पूरे देश को संगठित किया और एक बड़ा साम्राज्य स्थापित किया। उनके पिता एक साधारण व्यक्ति थे। जिनके बारे में हम लोग नहीं जानते। चाणक्य अपने ज्ञान और कठिन परिश्रम के कारण ही प्रसिद्ध हुए। उन्होंने अपने जीवन में संघर्षो का सामना किया।
जब ये दोनों महान हस्तियाँ संगठित हुई तो उन्होंने एक विशाल साम्राज्य खड़ा कियां उन्होंने विभिन्न संघर्षो का सामना किया। राजा चन्द्रगुप्त के पास साहस था और चाणक्य के पास ज्ञान था। इस ज्ञान और साहस के मेल ने एक सृजनात्मक समता (Potentiality) को विकसित किया। परंतु अगर यह संघर्ष अज्ञानता के साथ जुड़ता तो यह विनाश को बुलावा देता।
अतः हमें यह समझना होगा कि हम ज्ञान को संघर्ष के साथ जोड़े। संघर्ष का सामना करने पर हमारे समक्ष दो पहलू होंगे। एक तो हम चुनौती का सामना करे और दूसरा हम संघर्ष के साथ समझौता कर ले। जब हम समझौता करेंगे तो लोग कहेगंे कि तुम्हारा समय खराब है यानि शनि चढ़ गया है। जब हम साहसपूर्वक चुनौती का सामना करेंगे तो हमें ऐसा लगेगा कि समय हमारे पक्ष में है यानि शनि उतर गया है।
शनि देव Giver (दाता) और Destroyer (विनाश) दोनो के लिए जाने जाते हैं हमें मन से शनि देव की आराधना करनी चाहिए। ताकि सभी समस्याओं से मुक्त हो हम अपनी इच्छाओं को पूरा करके जीवन को बेहतर बना सके। इसी विचार के साथ सूर्य पुत्र शनि को नमन करते हुए इस श्लोक का स्मरण करते है।
‘‘ निलांजनं समाभासं रविपुत्रम् यमाग्रजम।
छाया मार्तड संभूतं तं नमामि शनैश्वरम्।।