Hindi, asked by gargminki1981p9u1w6, 1 year ago

sangati ka mahatva in Hindi nibandh

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Answered by parijain3110
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कहते हैं कि व्यक्ति योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है। व्यक्ति को जीवन के अंतिम क्षणों में गति भी उसकी संगति के अनुसार ही मिलती है। संगति का जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। संगति से मनुष्य जहां महान बनता है, वहीं बुरी संगति उसका पतन भी करती है। छत्रपति शिवाजी बहादुर बने। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनकी मां ने उन्हें वैसा वातावरण दिया। नेपोलियन जीवन भर बिल्ली से डरते रहे, क्योंकि बचपन में बिल्ली ने उन्हें डरा दिया था। माता-पिता के साथ-साथ बच्चे पर स्कूली शिक्षा का गहरा प्रभाव पड़ता है। कई बार व्यक्ति पढ़ाई-लिखाई करके उच्च पदों पर पहुंच तो जाता है, लेकिन संस्कारों के अभाव में, सही संगति न मिलने के कारण वह हिटलर जैसा तानाशाह बन जाता है। सदाचरण के पालन से चाहे तो व्यक्ति ऐसा बहुत कुछ कर सकता है, जिससे उसका जीवन सार्थक हो सके, परंतु सदाचरण का पालन न करने से वह अंतत: खोखला हो जाता है। हो सकता है कि चोरी-बेईमानी आदि करके वह धन कमा ले, कुछ समय के लिए पद-प्रतिष्ठा अर्जित कर ले, लेकिन उसका अंत बुरा ही होता है। सत्संगति का, अच्छे विचारों का बीज बच्चे के मन में बचपन में ही बो देना चाहिए। व्यक्ति की अच्छी संगति से उसके स्वयं का परिवार तो अच्छा होता ही है, साथ ही उसका प्रभाव समाज व राष्ट्र पर भी गहरा पड़ता है। जहां अच्छी संगति व्यक्ति को कुछ नया करते रहने की समय-समय पर प्रेरणा देती है, वहीं बुरी संगति से व्यक्ति गहरे अंधकूप में गिर जाता है।

अच्छी संगति व्यक्ति का मन व चित्त निर्मल करती है। उसकी प्रसन्नता बनी रहती है। दिन-प्रतिदिन उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। संगति कैसी है, इस बात से व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है। जीवन का हर कदम मायने रखता है। इसलिए उसे फूंक-फूंककर आगे बढ़ना चाहिए। अक्सर ऐसा देखने में आता है कि कुछ बच्चे स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई में बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन बुरी संगति में फंसकर नशा या मद्यपान करने लगते हैं। उनका जीवन बर्बाद हो जाता है। वे झूठी चकाचौंध में फंसकर स्वयं की वास्तविक शक्ति को नहीं पहचानते हैं। कई बार सत्संगति न मिलने के कारण उपयुक्त वातावरण न होने के चलते बच्चा अपनी प्रतिभा का विकास नहीं कर पाता, जबकि सत्संगति से उसमें अटूट विश्वास जगता है और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है।

Answered by geetagupta11
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सत्संगति से ही मनुष्य में गुण-दोष आते हैं।’ मनुष्य का जीवन अपने आस-पास के वातावरण से प्रभावित होता है। मूलरूप से मानव के विचारों और कार्यों को उसके संस्कार व वंश-परम्पराएँ ही दिशा दे सकती हैं। यदि उसे स्वच्छ वातावरण मिलता है तो वह कल्याण के मार्ग पर चलता है और यदि वह दूषित वातावरण में रहता है तो उसके कार्य भी उससे प्रभावित हो जाते हैं।


संगति का प्रभाव - मनुष्य जिस वातावरण एवं संगति में अपना अधिक समय व्यतीत करता है उसका प्रभाव उस पर अनिवार्य रूप से पड़ता है। मनुष्य ही नहीं वरन् पशुओं एवं वनस्पतियों पर भी इसका असर होता है। मांसाहारी पशु को यदि शाकाहारी प्राणी के साथ रखा जाए तो उसकी आदतों में स्वयं ही परिवर्तन हो जाएगा। यही नहीं मनुष्य को भी यदि अधिक समय तक मानव से दूर पशु-संगति में रखा जाए तो वह भी शनैः-शनैः मनुष्य-स्वभाव छोड़कर पशु-प्रवृत्ति को ही अपना लेगा।


सत्संगति का अर्थ - सत्संगति का अर्थ है-‘अच्छी संगति’। वास्तव में ‘सत्संगति’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-‘सत्’ और संगति अर्थात् ‘अच्छी संगति’। ‘अच्छी संगति’ का अर्थ है-ऐसे सत्पुरूषों के साथ निवास जिनके विचार अच्छी दिशा की ओर ले जाएँ।


सत्संगति से लाभ - सत्संगति के अनेक लाभ हैं। सत्संगति मनुष्य को सन्मार्ग की ओर अग्रसर करती है। सत्संगति व्यक्ति को उच्च सामाजिक स्तर प्रदान करती है विकास के लिए सुमार्ग की ओर प्रेरित करती है बड़ी-से-बड़ी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करने की शक्ति प्रदान करती है और सबसे बढ़कर व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती है। सत्संगति के प्रभाव से पापी पुण्यात्मा और दुराचारी सदाचारी हो जाते हैं। ऋषियों की संगति के प्रभाव से ही वाल्मीकि जैसे भयानक डाकू महान कवि बन गए तथा अंगुलिमाल ने महात्मा बुद्ध की संगति में आने से हत्या¸लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचार के मार्ग को अपनाया। सन्तों के प्रभाव से आत्मा के मलिन भाव दूर हो जाते हैं तथा वह निर्मल बन जाती है।

सत्संगति एक प्राण वायु है जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है। दयावान¸विनम्र¸परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है। इसलिए तुलसीदास ने लिखा है कि

‘सठ सुधरहिं सत्संगति पाई

पारस परस कुधातु सुहाई।’

एक साधारण मनुष्य भी महापुरूषों¸ ज्ञानियों¸ विचारवानों एवं महात्माओं की संगत से बहुत ऊँचे स्तर को प्राप्त करता है। वानरों-भालुओं को कौन याद रखता है लेकिन हनुमान¸सुग्रीव¸अंगद¸जाम्बवन्त आदि श्रीराम की संगति पाने के कारण अविस्मरणीय बन गए।

सत्संगति ज्ञान प्राप्त की भी सबसे बड़ी साधिका है। इसके बिना तो ज्ञान की कल्पना तक नहीं की जा सकती

‘बिनु सत्संग विवेक न होई।’

जो विद्यार्थी अच्छे संस्कार वाले छात्रों की संगति में रहते हैं उनका चरित्र श्रेष्ठ होता है एवं उनके सभी कार्य उत्तम होते हैं। उनसे समाज एवं राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ती है।

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