Hindi, asked by aditimudaliar17, 1 year ago

sanskaro ka mahtva in hindi essay

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Answered by answerplease14
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संस्कार’ शब्द सम् उपसर्गपूर्वक ‘कृ’ धातु में घञ प्रत्यय लगाने से बनता है जिसका शाब्दिक अर्थ है परिष्कार, शुद्धता अथवा पवित्रता । इस प्रकार हिन्दू व्यवस्था में संस्कारों का विधान व्यक्ति के शरीर को परिष्कृत अथवा पवित्र बनाने के उद्देश्य से किया गया ताकि वह वैयक्तिक एवं सामाजिक विकास के लिये उपयुक्त वन सके ।

शबर का विचार है कि संस्कार वह क्रिया है जिसके सम्पन्न होने पर कोई वस्तु किसी उद्देश्य के योग्य बनती है । शुद्धता, पवित्रता, धार्मिकता, एवं आस्तिकता संस्कार की प्रमुख विशेषतायें हैं । ऐसी मान्यता है कि मनुष्य जन्मना असंस्कृत होता है किन्तु संस्कारों के माध्यम से वह सुसंस्कृत हो जाता है ।

इनसे उसमें अन्तर्निहित शक्तियों का पूर्ण विकास हो पाता है तथा वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर लेता है । संस्कार व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं का भी निवारण करते तथा उसकी प्रगति के मार्ग को निष्कण्टक बनाते हैं । इसके माध्यम से मनुष्य आध्यात्मिक विकास भी करता है ।

मनु के अनुसार संस्कार शरीर को विशुद्ध करके उसे आत्मा का उपयुक्त स्थल बनाते हैं । इस प्रकार मनुष्य के व्यक्तित्व की सर्वांगीण उन्नति के लिए भारतीय संस्कृति में संस्कारों का विधान प्रस्तुत किया गया है ।

‘संस्कार’ शब्द का उल्लेख वैदिक तथा ब्राह्मण साहित्य में नहीं मिलता । मीमांसक इसका प्रयोग यज्ञीय सामग्रियों को शुद्ध करने के अर्थ में करते हैं । वास्तविक रूप में संस्कारों का विधान हम सूत्र-साहित्य विशेषतया गृह्यसूत्रों में पाते हैं । संस्कार जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त सम्पन्न किये जाते थे ।

अधिकांश गृह्यसूत्रों में अन्त्येष्टि का उल्लेख नहीं मिलता । स्तुति ग्रन्थों में संस्कारों का विवरण प्राप्त होता है । इनकी संख्या चालीस तथा गौतम धर्मसूत्र में अड़तालीस मिलती है । मनु ने गर्भाधान से मृत्यु-पर्यन्त तेरह संस्कारों का उल्लेख किया है । बाद की स्मृतियों में इनकी संख्या सोलह स्वीकार की गयी । आज यही सर्वप्रचलित है ।

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