Sanskrit anuvad-
1. धर्म से हीन पशु के समान हो।
2. भिखारी कानों से बहरा है।
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Answer:
धर्म से हीन पशु होता है- धर्म का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। संस्कृत में नीतिकार कहते हैं-‘धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः।’ अर्थात् मनुष्यों और पशुओं में आहार, निद्रा, मैथुन तथा भयभीत होना, ये सब समान होते हैं परन्तु धर्माचरण ही मनुष्य में विशेष गुण है जिसके कारण वह पशुओं से विशेष होता है। व्यक्ति की मनःस्थिति का प्रभाव उसके जीवन पर प्रत्यक्ष देखने में आता है। घातक मानसिकतायुक्त व्यक्ति के सामाजिक सम्बन्ध भी स्वस्थ नहीं रहते और यह मनोवृत्ति व्यक्ति के व्यवहार में स्पष्ट परिलक्षित होती है। उसके समस्त कार्यों के परिणाम तदनुसार ही देखे जा सकते हैं। महर्षि दयानन्द के मनोभावों का अध्ययन इस तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने अपने विषदाता को साक्षात् सामने उपस्थित देखकर भी उसके प्रति हित-बुद्धि के विचारों को दूर न होने दिया और घातक विचारों को अपने समीप भी न आने दिया। उत्तम मानसिक(ता वाला) व्यक्ति कभी भी सब के हित की बात को अपने से पृथक नहीं होने देता। उसके व्यवहार में परस्पर प्रीति के भाव ओत-प्रोत रहते हैं। उसके स्वार्थ में शिव की भावना होती है जो उसे प्रतिक्षण विनाशक भावों से दूर रखती है।