Sanskrit class 8 ki book mein se koi 5 niti shlok lekhiye bhavarth sahit.
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Answers
Explanation:
गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।
सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।
भावार्थ :– प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ‘रुचिरा’ के प्रथम अध्याय “सुभाषितानि” से ली गई है । इन पंक्तियों के माध्यम से यह पाठ हमें यह शिक्षा देता है कि, हमें सदैव अच्छी बातों को अपनाना चाहिए। और उसी के अनुसार आचरण करना चाहिए ।
जब कोई अच्छा गुण किसी गुणवान व्यक्ति के पास जाता है तो वह सदैव अच्छा ही बनकर रहता है । लेकिन जब यही गुण किसी दोष वाले व्यक्ति के पास जाता है तो वह दोष बन जाता है, उसी प्रकार नदियों का पानी पीने योग्य होता है, लेकिन जब यह नदियाँ समुंद्र में मिल जाती है तो, इसका पानी पीने योग्य नहीं रहता है।
साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥ 2 ॥
साहित्य , संगीत , कला से विहीन व्यक्ति संसार में बिना पूँछ, बिना सींग वाला पशु माना जाता है, यह पशु घास नहीं खाकर भी जीवित रहता है, इस प्रकार से यह इन पशुओ का सौभाग्य माना गया है।
लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री
नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः ।।
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं
राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य ॥
लालची व्यक्तियों का यश, चुगलखोर की मित्रता, धन को महत्व देने वाले का धर्म, बुरी आदतों वालों की विद्या, कंजूस का सुख और जिस राज्य के मंत्री गलत आचरण वाले होते हैं , उसका राज्य, समाप्त हो जाता हैं।
पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यमेव जनयेन्मधुमक्षिकासौ ।
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति ॥
मधुमक्खी मीठे तथा कड़वे फूलों का रस पीकर भी मीठे शहद का निर्माण करती है। उसी प्रकार संत लोग सज्जन और दुर्जन दोनों लोगों की बातों को सुनकर हमें केवल अच्छे वचन ही सुनाते हैं ।