sanskrit me kitne prakar sandhi hai
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Sandhi – Sanskrit Vyakaran
सन्धि की परिभाषा – वर्ण सन्धान को सन्धि कहते हैं। अर्थात् दो वर्गों के परस्पर के मेल अथवा सन्धान को सन्धि कहा जाता है। पाणिनीय परिभाषा – “परः सन्निकर्षः संहिता” अर्थात् वर्णों की अत्यधिक निकटता को संहिता कहा जाता है। जैसे—'सुधी + उपास्य' यहाँ 'ई' तथा 'उ' वर्गों में अत्यन्त निकटता है।
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जब दो स्वरों का सन्धान अथवा मेल होता है, तब वह सन्धान स्वर – सन्धि या अच् सन्धि कही जाती है। यहाँ अच् – सन्धि में स्वर के स्थान पर आदेश होता है। स्वर – सन्धियाँ आठ प्रकार की होती हैं। जैसे –
अ + अ = आ – पुष्प + अवली = पुष्पावली
अ + आ = आ – हिम + आलय = हिमालय
आ + अ = आ – माया + अधीन = मायाधीन
आ + आ = आ – विद्या + आलय = विद्यालय
इ + इ = ई – कवि + इच्छा = कवीच्छा
इ + ई = ई – हरी + ईश = हरीश
इ + इ = ई – मही + इन्द्र = महीन्द्र
इ + ई = ई – नदी + ईश = नदीश
उ + उ = ऊ – सु + उक्ति = सूक्ति
उ + ऊ = ऊ – सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूमि
ऊ + उ = ऊ – वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ – भू + ऊर्ध्व = भूल
ऋ+ ऋ = ऋ – मात + ऋण = मातण
स्वर सन्धि मे सन्धियाँ 7 प्रकार की होती हैं-
यण – सन्धि
अयादि सन्धि
गुण – सन्धि
वृद्धि सन्धि
सवर्णदीर्घ सन्धि
पूर्वरूप सन्धि
पररूप सन्धि
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